________________ 203 गोरु वाला, वृष्य, पौष्टिक, रसायन, अमिदीप्तिकारक, स्वादिष्ट तथा मूत्रकृच्छ , अश्मरी, दाह, मेह, श्वास, कास, हृद्रोग, अर्श, वस्तिवात, त्रिदोष, कुष्ठ और शूलनाशक है।। गुण-तिक्तं, गोक्षुरकं वृष्यं शाकस्रोतो विशोधनम् ।-रा०व० गोखुरू का पत्ता--तीता, वृष्य और नाड़ी को शुद्ध करनेवाला है। गुण-वीजं गोक्षुरकं शीतं मूत्रलं शोथवारणम् / घृष्यमायुष्करं शुक्रमेहनुस्कृच्छ्रनाशनम् ॥-मा० सं० गोखुरू का बीज-शीतल, मूत्रल, शोथनाशक, वृष्य, आयुषर्द्धक तथा शुक्र, प्रमेह और मूत्रकृच्छुनाशक है। गुण-क्षारस्तु गोक्षुराणां तु मधुरः शीतलो मतः / स्रोतोविशोधनश्चैव. वातघ्नो वृष्य एव च ॥-नि० र० गोखुरू का तार-मधुर, शीतल, स्रोतसों को शुद्ध करने वाला, वातनाशक और वृष्य है। विशेष उपयोग (1) पाण्डुरोग में गोखुरू के काढ़े में शहद और मिश्री मिलाकर पीना चाहिए / (2) प्रमेह में-गोखुरू और मिश्री का चूर्ण खाएँ। (3) मूत्रकृच्छ और उष्णवात में-गोखुरू के पंचांग के काढ़े में शहद और मिश्री मिलाकर पीना चाहिए / (4) पुष्टि के लिए-गोखुरू का चूर्ण तीन माशे; एक पाव दूध, चार तोले घी, और एक तोला मिश्री के साथ सेवन करें।