________________ 217 सरिवन विशेष विवरण-इसका वृक्ष बहुत ऊँचा होता है / इसकी फलियाँ लम्बी-लम्बी तलवार के समान दो-दो फिट तक की होती हैं। इसके भीतर रूई और दाने निकलते हैं। एक दूसरे प्रकार का भी सोनापाठा होता है। उसके फूल लाली लिए समुद्रशोपजैसे होते हैं। गुण-श्योनाकयुगलं तिक्त शीतलं च त्रिदोषजित् / पित्तश्लेष्मातिसारनं सचिपातज्वरापहम् ॥-रा० नि० दोनों प्रकार का सोनापाठा-तीता, शीतल तथा त्रिदोषनाशक ; कफ, पित्त, अतीसार और सन्निपातज्वरनाशक है / . विशेष उपयोग (1) रक्तविकार पर-सोनापाठा के काढ़ा में शहद मिलाकर पीना चाहिए / (2) अतिसार में सोनापाठा का पुटपाक करके तथा रस निकालकर पीना चाहिए। (3) कृमिरोग में सोनापाठा और वायविडंग का चूर्ण, शहद के साथ चाटना चाहिए / mmmmmm - सविन सं० गु० शालिपर्णी, हि० सरिवन, ब० शालपान, म० सालवण, क. मुरुलुवोने, तै० शीयाकुपना, और लै० डेस्मोडियं गंटिकम्-Demodium Gangelicum.