________________ 227 कंधी विशेष विवरण-कंघी का वृक्ष दो-ढाई हाथ तक ऊँचा होता है / इसका फल-पीला और फल चक्रदार होता है / बालक उन फलों से कपड़ों पर छापा देते हैं। इसका बीज खरेंटी के बीज के समान होता है। गुण-तिक्ता कटुश्चातिबला वातन्त्री कृमिनाशिनी / दाहतृष्णाविषच्छर्दिक्लेदोपशमनी परा ॥–शा० नि० कंघी-तीती, कड़वी तथा वात, कृमि, दाह, तृषा, विष, वमन और क्लेदनाशक है। विशेष उपयोग (1) विद्रधि और व्रण पर-कंधी के कोमल पत्त पीस और गरम करके लगाना तथा कपड़ा बाँधकर बराबर शीतल जल छोड़ना चाहिए / (2) आतशक की गर्मी पर--कंघी की छाल और पत्तों का काढ़ा बनाकर सिर धोना चाहिए / (3) भूतज्वर में- कंघी की जड़ बाँधनी चाहिए / (4) ज्वर में-पुष्य नक्षत्र में कंघी की जड़ लाकर बाँधे। (5) मूत्र और वीर्यदोष पर-कंघी के बीज का चूर्ण, हींग, दूध और घी एक साथ मिलाकर पीना चाहिए / (6) अंडवृद्धि में कंघी के काढ़े में एरंड तैल मिलाकर पीना चाहिए। (7) बिच्छू का विष-कंघी की जड़ पीसकर लगाएँ।