________________ लटजीरा सं० अपामार्ग, हि० लटजीरा, ब० आपाङ्ग, म० अघाडा, गु० अघेडो, क० चिचिरा, तै० दुच्चीणिके, अ० उत्कम, फा० खारवासगोता, अँ० रफचेपट्री-Ruph Chafitree, और लै० एचिरेंथिस एस्पिरा-Achyranthis Aspera. विशेष विवरण-चिरचिटे का क्षुप होता है / इसे चिरचिटा और लटजीरा भी कहते हैं ; इसके पत्ते गोल होते हैं / पत्तों के बीच से एक बाल निकलती है। उस बाल में सूक्ष्म, मृदु'; किंतु काँटेयुक्त बीज निकलते हैं। यह जंगलों में स्वयं ही उत्पन्न होता रहता है। यह चार फिट तक ऊँचा होता है। वर्षाऋतु में यह अधिकता से होता है। इसके पौधे प्रायः भारत के सभी प्रान्तों में पाए जाते हैं। इसके डंठल पर बारीक रेशा होता है / यह लाल और सफेद दो प्रकार का होता है। गुण-अपामार्गस्तु तिक्तोष्णः कटुश्च कफनाशनः / ____ अर्शः कण्डूदरामन्नो रक्तहृद्ग्राहि वान्तिकृत् // - रा० नि० लटजीरा-तिक्त, उष्ण, कड़वा, ग्राही, वान्तिकारक तथा कफ, अर्श, कण्डू और उदररोग, आमविकार तथा रक्तविकार नाशक है। गुण-रक्तापामार्गः किंचित्कटुकः शीतलः स्मृतः / मलावष्टम्भवमिकृद्वातविष्ठम्भकारकः //