________________ वनस्पति-विज्ञान 168 (4 ) मासिकधर्म के लिए-इन्द्रायण के जड़ की पोटली योनि में रखनी चाहिए। (5) स्तनरोग में-बड़ी इन्द्रायण की जड़, पीसकर लेप करनी चाहिए। (6) शूल में इन्द्रायण की जड़ पानी के साथ घिसकर एक माशा सोंठ, मिर्च, पीपर का चूर्ण मिलाकर पीना चाहिए। (7) सन्धिवात में-इन्द्रायण की जड़ और पीपर समभाग तथा गुरिच पाठ भाग पानी के साथ पीसकर पीना चाहिए। (8) अण्डवृद्धि पर-इन्द्रायण की जड़, रेड़ी के तेल के साथ पीसकर लगाना तथा दो माशे चूर्ण गरम दूध के साथ सेवन करना चाहिए। (8) योनिशूल पर-इन्द्रायण की जड़, बकरी के दूध अथवा घी के साथ घिसकर लेप करना चाहिए / (10) गण्डमाला में-इन्द्रायण के जड़ की छाल पीसकर लगानी चाहिए। (11) फोड़ा पर-इन्द्रायण की जड़ घिसकर लेप करें। (12 ) रक्तगुल्म में इन्द्रायण की जड़, रीठा के पानी के साथ घिसकर पीएँ / अथवा उसकी पोटली योनि में रखें। (13) विरेचन के लिए-इन्द्रायण की जड़ का चूर्ण मिश्री मिलाकर गरम पानी के साथ रात के सोते समय खाएँ।