________________ 187 गुंजा (2) चेचक से आँख में फूली पड़ जाने पर-रेंड के रस में गुंजा घिसकर अंजन करना चाहिए। (3) वीर्यवृद्धि के लिए-गुंजा की जड़ और मिश्री दूध के साथ पकाकर पीना चाहिए। (4) स्तम्भन के लिए-गुंजा की जड़ और मिश्री दूध के साथ पकाकर पीना चाहिए। (5) इन्द्रलुप्त पर-गुंजा की जड़ अथवा गुंजा तथा मिलावा, पानी के साथ घिसकर लगाना चाहिए / अथवा गुंजा, घी और शहद एक साथ घोटकर लगाना चाहिए / (6) स्वरभंग में-गुंजा की पत्ती मुख में रखकर चूसें / (7) मुँह के छालों पर-गुंजा की पत्ती अथवा जड़ चबाना चाहिए। ____(8) प्रमेह में-गुंजा की पत्ती का रस, दूध में मिलाकर पीना चाहिए। ___(8) मूत्रकृच्छ में-सफेद गुंजा के रस में मिश्री और जीरा का चूर्ण मिलाकर पीना चाहिए / (10) उपदंश में-गुंजा की पत्ती के रस में जीरा और मिश्री मिलाकर पीना चाहिए / (11). पारा का विष-गुंजा की पत्ती सात दिनों तक खाने से नष्ट हो जाता है।