________________ वनस्पति-विज्ञान (18) सन्धिवात में-मूसाकानी का चूर्ण सूंघना और मलना चाहिए। (16) इन्द्रिय-शैथिल्य पर-मूसाकानी का रस वस्तिस्थान पर लेप करना चाहिए। अथवा इसकी सूखी पत्ती और आटा घी में भूनकर इक्कीस दिनों तक खाना तथा पर्दे में बैठना चाहिए / दूध और गेहूँ की चीजें खानी चाहिएँ। मुँइ आँवला' सं० भूम्यामलकी, हि० मुँइ आँवला, ब० भुईआमला, म० भुईआंवली, गु० भोंआंवली, क० आरुनेल्लि, तै० नेलाउसीरीके, और लै० पी० युरिनेरिया-P. Urinaria. विशेष विवरण-इसका क्षुप छोटा-छोटा होता है / पत्तों के नीचे राई के दाने के समान फलों की शाखा होती है। इसका कोई-कोई पेड़ दो फिट तक ऊँचा होता है / बरसात में इसके पेड़ उत्पन्न होते हैं / इसकी डाल धान के डण्ठल के समान होती है / इसका रङ्ग हरा होता है / इसके फल का स्वाद-खट्टा और कड़वा होता है। यह गर्मी में सूख जाता है। इसीसे कार्तिक मास के अन्तर्गत ही इसका संग्रह कर लिया जाता है; क्योंकि उस समय यह पूर्ण यौवनावस्था में रहता है। गुण-भूधात्री च कषायाम्ला पित्तमेहविनाशिनी / शिशिरा मूत्ररोधार्तिशमनी दाहनाशिनी ॥-रा० नि०