________________ सोमलता सं० सोमवल्ली, हि० सोमलता, ब० सोमलता, म० सोमवल्ली, क० सोमबल्ली, तै० पुल्लतोगे, और लै० सार्कोस्टैम्मा ब्रेवीस्टिग्माSarcostemma Brevistigma. विशेष विवरण-यह एक प्रकार की लता है। इसमें शुक्ल पक्ष में क्रमशः प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक एक-एक पत्ता प्रति दिन निकलता है / पन्द्रह दिनों में पन्द्रह पत्ते निकलते हैं / पुनः कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से लेकर अमावास्या तक एक-एक पत्ता प्रति दिन गिरता है / इस प्रकार फिर उसमें पत्ते एक भी नहीं रह जाते, और फिर वही क्रम चलता है / इस लता का सोम से बहुत बड़ा सम्बन्ध है / इसलिए इसका नाम सोमलता पड़ा। ____ यह दो प्रकार की होती है। छोटी और बड़ी। इसका रंग नीला होता है / ऋग्वेद में सोमलता का बहुत बड़ा महत्व वर्णित है / सोमलता के रस में मेधावर्द्धक एक अद्भुत शक्ति है। किन्तु केवल मात्र इसमें ही मद उत्पन्न करने की शक्ति नहीं है / प्राचीन काल में इसके योग से एक प्रकार मद्य तैयार किया जाता था / कुछ लोगों का कथन है कि ब्राह्मण के अतिरिक्त यदि अन्य कोई वर्ण इसे पी लेता था, तो उसे वमन हो जाता था और उस उलटी का जो छीटा शरीर पर पड़ जाता था, वहाँ-वहाँ सफेद दाग पड़ जाते थे, और शरीर का वर्ण बिगड़ जाता था। इसलिए जला