________________ मानव शरीर के तत्त्व आयुष्य अथवा जीवन कहते हैं / शरीर से जब आत्मा का वियोग हो जाता है तब उसे मृत्यु कहते हैं। यह योग और वियोग आयुष्य और मृत्यु के सम्बन्ध का ज्ञान वैद्यक शास्त्र से पूर्ण रूप से मिल सकता है / आयुष्य का विचार केवल दीर्घ जीवन सम्बन्धी ही नहीं करना चाहिए। प्रायः आत्मा और शरीर का योग लम्बी अवधि तक रहता है। परन्तु इस योग में भी जब किसी मनुष्य को शारीरिक या मानसिक दुःख होता है, तब वह लम्बी आयु भी अधिक दुखदायक हो जाती है। अतः यह समझना चाहिए कि जीवात्मा और शरीर का सुखकारक वियोग ही मोक्ष है; और दुखदायक वियोग ही नरकवास है / स्वर्ग और नरक का दृश्य यहीं दीख पड़ता है। . आयुष्य की जो सीमा शास्त्रकारों ने निर्धारित की है उसका उल्लंघन भी आजकल हो रहा है / प्रायः रोज ही पढ़ने को मिलता है कि अमुक स्थान पर एक स्त्री या पुरुष है, जिसकी आयु प्रायः एक सौ पैंसठ वर्ष की है, और वह अमुक घटना का वर्णन आँखों देखा-जैसा करता है / इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि आत्मा और शरीर का सुखद संयोग अधिक काल तक रहता है; किन्तु उस सुखद संयोग में दुःखद वियोग झट उपस्थित हो जाता है, जिसे अकाल मृत्यु कहना चाहिए / आजकल संसार में अधिक व्यक्ति अकालकाल-कवलित होते हैं / चिन्ता, शोक और व्याधि आदि के कारण जितनी मृत्युएँ होती हैं, वे अकाल मृत्यु कही जाती हैं। किन्तु