________________ सं० एरंड, हि० रेंड रेड़ी, ब० भेरंडा, म० एरंड, गु० एरंडो, क० एरंडु आडलके, तै० आमुडामु, अ० खिरवा, फा० बेदंजीर, अॅ० कास्टर आइल प्लाट-Castor oil Plant, और लै० रिसिन्स काम्युनिस-Ricinus Communis. विशेष विवरण-यह सभी जगह सरलता से पहचाना जा सकता है। इसका पत्ता हाथ के पंजा के समान पाँच अंग वाला होता है / इसीसे इसे पंचागुल भी कहते हैं / यह दो प्रकार का होता है; लाल और सफेद / या बड़ा और छोटा / बड़ा दस पन्द्रह हाथ ऊँचा होता है, और छोटा सात-आठ हाथ ऊँचा होता है / बड़े का बीज छोटे की अपेक्षा बड़ा होता है / इसके पेड़ की लकड़ी पोली होती है। इसके बीज से तेल निकलता है। एरंड का सम्पूर्ण पदार्थ औषध के लिए उपयोगी है। इसकी लकड़ी औषध फॅकने, जड़ काथ आदि के काम आने, पत्ता अनेक प्रकार के काम आने, बीज की गुही और उसका तेल भी अनेको उपयोगी कामों में आने का उल्लेख है। गुण-एरंडयुग्मं मधुरमुष्णं गुरुविनाशयेत् / ___ शूलशोथकटीवस्तिशिरः पीड़ोदरज्वरान् // वम श्वासकफानाहकासकुष्ठाममारुतान् ।-शा० नि० दोनों प्रकार के एरंड-मधुर, उष्ण, भारी तथा शूल,