________________ वनस्पति-विज्ञान वर्ष की परमायु का डंका बजा गये हैं। हमारे आयुर्वेद निर्माताओं ने स्वास्थ्य-रक्षा के उपायों का निर्देश करते समय जिन सदाचारों को विशेष महत्व दिया है, यदि हम उनका पालन अक्षरशः करें, तो यह निश्चित है कि हम नाना प्रकार की औषधियों की यन्त्रणाओं से छुटकारा पा जायें एवं नीरोग और स्वस्थ रहकर दीर्घजीवन प्राप्त करें। ये सदाचार भी हमें शान्त-मस्तिष्क के द्वारा ही प्राप्त हो सकते हैं; किन्तु वह शान्ति हमें वानस्पतिक आहार से ही प्राप्त हो सकती है। ' हमारे आयुर्वेद में तीन प्रकार की एषणाएँ मानी गई हैं। यदि हम मन, बुद्धि, पराक्रम और पौरुष का रक्षण यत्नपूर्वक करें, तभी हम तीनों एषणाओं का सुखोपभोग कर सकते हैं। प्राण, धन और परलोक की इच्छा मनुष्य का स्वाभाविक धर्म है / प्राण की रक्षा सबसे अधिक आवश्यक है / स्वस्थ मनुष्य को यथोचित स्वास्थ्य की रक्षा, और पीड़ित व्यक्ति को अपने व्याधि-शमन का उचित उपाय करना चाहिए। प्राणैषणा के बाद धनैषणा का स्थान है। सुन्दर स्वास्थ्य के बाद हमें धनार्जन की चिन्ता करनी चाहिए, क्योंकि दरिद्रता अनेकानेक अपकों की जननी है। इससे हम पापी बन जाते हैं तथा अपनी दीर्घायु को भी खो बैठते हैं / तीसरी परलोकैषणा-मोक्ष-सुख की प्राप्ति की चेष्टा है / इस सुख से ही हम अनन्त महाप्रभु के चरणों में ध्यान लगा सकते हैं।