________________ वनस्पति-विज्ञान 14 संसार में चिन्ता, शोक और व्याधियों से मुक्त विरले ही मिलते हैं / अतएव हमारा कर्तव्य है कि शरीर और आत्मा को अधिक कालतक सुखद संयोग में रहने का अवसर दें। ऐसा करने से ही अन्त में हमें प्रकृति देवी के चरणों में शान्तिपूर्वक लय हो जाने का समय मिल सकेगा। आयुर्वेद , आयुर्हिताहितं ध्याधेर्निदानं शमनं तथा। विद्यते यत्र विद्वद्भिः स आयुर्वेद उच्यते // आयु का हित और अहित तथा व्याधि के निदान एवं शमन का उपाय जिससे विद्वान लोग समझ सकें, उसे आयुर्वेद कहते हैं। . आयुका मतलब है मन, जीवात्मा और शरीर का संयोग / ये तीनों भिन्न-भिन्न पदार्थ हैं। इन तीनों की उत्पत्ति ही पुरुष की उत्पत्ति का कारण है / पुरुष ही आयुर्वेद का अधिकरण है। जो गुण पुरुष का अनुवर्ती है, वही मन है / इन्द्रियाँ मन के वशवी होकर ही विषय-प्रहण करने में समर्थ होती हैं / मन की साम्यता ही सुख, स्वास्थ्य और शान्ति की जननी है। जब हमारी इन्द्रियाँ और मन हमारे वश में नहीं रह जाते तभी हम रोग के शिकार होते हैं / यही रोग हमारे जप-तप, संयम और.आयु में विन्न उप स्थित करता है। हमारी इन्द्रियाँ पंच-महाभूतों के विकार मात्र