Book Title: Upang Prakirnak Sutra Vishaykram
Author(s): Jain Pustak Pracharak Samstha
Publisher: Jain Pustak Pracharak Samstha

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १९. रा० २० जी० २१ प्रज्ञा०२२ ॥११॥ उकोसेण गिहत्थो गुणपोया उग्गम० मियविरस ” उप्पायणए सणा उच्चारे पासवगे खेले उच्छूढ सरीरघरा उज्जमं सव्वथामेसु भा उज्जेणि हत्थिमित्तो उजेगीनयरीए उज्झ सुनिक्षाण सलं उज्झाया मंगलं मज्झ उज्झिभजरमरणाणं उज्झनिआण सलो उज्झयवइरबिरोहो उडुमहे तिरियम्मि 33 २७-४४५ उड्डमहे तिरियम्मि २४ - (२२२टी०) 3 ,, वि २७- १४१२ उण्हंमि सिलावट्टे २७-१३९६ २७-४६७ २७-६९९ २७-७१८ २७-१३५२ २७- १७२० २७-६५१ २७-३३१ २७ २५१ २७- २२ २७-४१५ २७-३५ www.kobatirth.org २७-१४७५ २७-१७४ उत्तत्तकणगवन्ना उत्तमकुलसंपात उत्तमा य सुणक्खत्ता "" "3 उदगस्स नालिआए उदगं खलु नायब्वं उदयस्मि अड्ड भणिया उद्धियनयणं खगमुह० उप्पन्नभत्तपाणो उप्पन्नाणुप्पन्ना उपपन्ना 39 उप्पन्ने उवसग्गे उम्मग्गठिए सम्मग्ग० ठिओ इक्कोऽवि 33 २७-१००१ २७-१०९ २७-१७१३ 35 २२- १४७ २७-३५० 33 उल्लीणोलीणेहिय उपसहेडकारण० २४-२१ कुसलं २५-९५ | उवकरणभंडमाईणं २७-५१३ उचलद्धपरमवंभा २७-५१४ उवलद्धो सिद्धि पहो २४-११] उपयो २७-५६० २७-८६० २७-१५४ 35 २७- १४५८ उववायपरीमाणं २७- १७६५ उवसग्गे तिविहेवि २७-७३८ उवसम किण्हसप्पो २७-७३९ | उवहीनियडिपट्टो उम्मग्गदेसणा नाण० For Private and Personal Use Only " मग्गसंप० संपयायं उचचारण व सायं उबवाओ पुरिसाणं संकष्पो Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७-१३०० २७-७४० २७-१७३९ २७-१४१३ २७-१५६२ २७-१२४२ २७-८८३ २७–२९ २७-१६०६ २७-११४१ २१-१९ २१-१३ २५-४२ २१-११ २७-१७७२ २७-३५८ २७-१३५३ सूर्य० | २३ चं० (२४ जं० २५ नि० २६ प्रकी०२७ ॥११॥

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