Book Title: Tulsi Prajna 1998 01
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 17
________________ (पिष्ट) से बनाया जाता है इसीलिए बाणभट्ट के ग्रंथ-हर्षचरित में इसे "पिष्टपञ्चा. गुलांक' कहा गया है। चाहे बालक का जन्म हो, किसी लड़के या लड़की का विवाह हो, लड़की का तिलक हो या फिर देवी की पूजा हो, घर की महिलाओं के द्वारा हल्दी और चावल की पीठी से तैयार किए गए ऐपन से थापे लगाने की परम्परा हमारे देश के कोने-कोने में आज भी पाई जाती है। जन्मोत्सव या विवाहोत्सव के अवसर पर नारियां अपनी दायी हथेली में ऐपन लगाकर घरों के दरवाजों के पक्खों पर उस हाथ की छापें लगा देती हैं । जब लड़की का तिलक चढ़ाया जाता है तब उसमें भेजे जाने वाले कपड़ों के थान पर लड़की के हाथ का थापा लगवाया जाता है। विवाह के मण्डप में गाड़े गए खम्भ पर भी थापे लगाए जाते हैं । इसी प्रकार विवाह के बाद जब मण्डप सिराया जाता है तब भी घर की नारियां प्राय: सभी परिजनों की पीठ पर थापे लगाती हैं । देवी की पूजा करते समय उनकी मढ़िया (छोटा मन्दिर) के प्रवेशद्वार पर अथवा बनाई गई अल्पना में भी नारियां प्रायः सात थपियां बनाकर सप्तमातृका के रूप में उनकी पूजा करती हैं। आइए देखें थापा या पञ्चाङगुलांक की यह लोकप्रिय परम्परा कितनी पुरानी है, कितनी व्यापक है, और थापे का अर्थ क्या है, तात्पर्य क्या है अथवा ये क्यों लगाए जाते हैं ? ___थापा' या 'पञ्चाङ्गुलांक' का उल्लेख हमारे साहित्य में, अभिलेखों में तथा कला में एक मांगलिक चिह्न के रूप में हजारों सालों से पाया जाता रहा है। इसी प्रकार थापे का उपयोग अनेक प्राचीन परंपराओं में दिखाई देता है। पुत्र-जन्म सबसे पहले हम पुत्र-जन्म की परम्परा का परीक्षण करें। आज भी पुत्र-जन्म के अवसर पर घर के प्रवेशद्वार के अलग-बगल पक्खों पर पञ्चाङ्गुल के छापे (थापे) बनाए जाते हैं । घर के जिस कमरे में बालक का जन्म होता है उसे 'सोरी' या 'सोरगह' कहा जाता है । सौरकक्ष के द्वार पर ये थापे विशेष रूप से लगाए जाते हैं । थापों के साथ-साथ प्रवेशद्वार को झालरों और बन्दनवारों से भी सजाया जाता है । पुत्र-जन्म के अवसर पर पञ्चाङ गुलांकों से द्वार को सजाने की परंपरा के साक्ष्य सातवीं शताब्दी ई० के वाणभट्ट की कृति कादम्बरी में पाए गए हैं। कादम्बरी में उज्जयिनी के राजा तारापीड़ की रानी विलासवती के सूतिकागृह का विशद् वर्णन है । उसके द्वार के दोनों पाश्वों में दो मंगल कलश पधराए गए थे। भांति-भांति के नव पल्लवों से बनी झालरें और बन्दनवार द्वार पर लटकाई गई थीं । लोकाचार में निपुण बड़ी-बढ़ी स्त्रियों ने द्वार के पक्खों पर गोबर से सथियां (स्वस्तिक प्रतीक) बनाई थीं जिन पर कोड़ियां और कपास के गुल्ले चिपकाए थे। दोनों पावों में सूर्य और चन्द्र की आकृतियां बनाई गई थीं। उनके बीच में आलते के थापों से अलंकृत कपड़े चिपकाए गए थे। तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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