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५. निर्ग्रन्थ-परम्परा में चैतन्य आराधना - आचार्यश्री नानेश, प्रकाशक -१ -श्री अखिल भारतवर्षीय साधुमार्गी जैन संघ, समता भवन, बीकानेर, प्रथम संस्करण१९९७, मूल्य १०/- रुपये ।
वर्तमान भोगवादी संस्कृति में जी रहा मानव परिग्रह एवं आधुनिक सुविधाओं में सुख मान रहा है और तनाव, संघर्ष एवं अशान्ति में निरन्तर वृद्धि करता जा रहा है । जबकि सुख और शांति हमारी मनः स्थिति को सम रखने में है । आचार्यश्री नाश ने अनेक आगम सूत्रों की व्याख्या कर यह समझाने की चेष्टा की है कि अणगार के लिये तेजस्काय व वायुकाय की विराधना से विरत होना ही साध्वाचार है । उन्होंने पन्नवणा सूत्र के संघरस समुट्ठिए - पद में संघर्ष से समुपन्न होने से अग्नि को तेउकाय माना है और उत्तराध्ययन सूत्र ( ३६वां अध्ययन ) के विज्जू को विद्युत् | अभिधान राजेन्द्र कोष में उकाय शब्द की व्याख्या का हवाला प्रकार बताए हैं और बिजली को सचित्त अग्नि सिद्ध किया है ।
देकर उन्होंने अग्निकाय के तीन
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कुछ विद्वान् बिजली को ऊर्जा बताकर अग्नि से भिन्न करते हैं । उन्हें आचार्य | नानेश ने जैन दर्शन के तत्त्वज्ञान से अनभिज्ञ कहा है। आचार्य के अनुसार बिजली और अग्नि, तेजस्काय के भेद हैं । जैसे सूर्य से सूर्य किरण भिन्न नहीं होती वैसे ही अग्नि से ताप भिन्न नहीं है । जब आकाश से बिजली गिरती है तो जीवों की विराधना होती है । वस्तुतः बिजली, अग्नि, उष्णता, प्रकाश-चारों एक गुण के धारक हैं । इसी प्रकार वायुकायिक हिंसा का सूक्ष्म विवेचन आचार्यश्री ने किया है और कहा है कि अणगार वायुकायिक हिंसा से विरत बनकर वनस्पति और सकाय की हिंसा से भी विरत रहता है । उन्होंने निर्ग्रन्थ- परम्परा को साधुमार्ग कहा है और इस साधु मार्ग के अन्तर्गत निर्ग्रन्थ आराधना को चैतन्य माना है क्योंकि निर्ग्रन्थ का उद्देश्य चैतन्य है ।
इस प्रकार इस लघुकाय पुस्तिका में आगम- प्रमाणों से जैन धर्म में व्यवहृत चैतन्य आराधना को भलीभांति स्पष्ट करके साधु मार्गी परम्परा में जड़ तत्त्व पूजा के प्रावधान न होने को प्रमाणित किया गया है ।
६. क्रान्तिकारी संत मुनिश्री तरूण सागर द्वारा लाल किले से राष्ट्र के नाम संदेश- - ३० नवम्बर १९९७ को दिया भाषण । प्रकाशक - तरूण कांति प्रकाशन, ७०. ७० डिफेंस एन्क्लेव, दिल्ली – ९२, मूल्य - १० /- रुपये |
३० नवम्बर सन् १९९७ को लालकिले पर मांस निर्यात के विरोध में अहिंसा रैली हुई । यह रैली सन् १९६६ में हुई गोरक्षा रैली की ही तरह गैर राजनीतिक रैली थी और प्रशासन एवं पुलिस के अनुसार इसमें एक लाख से अधिक लोग थे। रैली में जैन बहन-भाइयों के साथ दिल्ली की आम जनता भी थी जो एक माह तक की गई पदयात्राओं के कारण यहां पहुंची थी। इस रैली में प्रमुख लोगों में श्री लालकृष्ण आडवाणी, साहिब सिंह वर्मा, अशोक सिंघल, साहू रमेश जैन, शीलचन्द्र जैन, निर्मल कुमार गंगवाल, महेन्द्र सिंह चौधरी इत्यादि अनेकों महत्त्वपूर्ण व्यक्ति इस रैली में उपस्थित थे ।
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तुलसी प्रथा
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