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ज्ञान परम्परा के क्रमिक विकास के चरण निहित हैं, अतः उनका विशेष महत्व है
१. धरणा
अवाय के पश्चात् यथावत् रूप में ज्ञात अर्थ को निरन्तर धारण करना धरणा है, यह धारणा की प्रथम अवस्था है जिसमें उपयोग से अर्थ च्युत नहीं होता । इसका कालमान अन्तर्मुहूर्त है । इसकी तुलना तत्त्वार्थ भाष्यगत प्रतिपत्ति और विशेषावश्यकभाष्यगत अविच्युति से की जा सकती है ।
२. धारणा
अवाय के द्वारा ज्ञात अर्थ एक समयावधि के बाद अनुपयोग की अवस्था में चला जाता है फिर भी आवश्यकतानुसार पुनः स्मरण कर लिया जाता है, ज्ञान के अवस्थान की यह अवधि जिसका कालमान अन्तर्मुहूर्त से लेकर दिनों तक का है, वह धारणा है । ६ हरिभद्र के अनुसार भी धारणा वह ज्ञानोपयोग है जो अन्तर्मुहूर्त से लेकर असंख्य काल तक अवधि के बाद भी ज्ञात अंश के स्मरण का कारण बनता है । १७
३. स्थापना -
जिनदासगणी के अनुसार स्थापना वह धारणांश है जिसमें अवाय के द्वारा अवधारित अर्थ को पूर्वापर आलोचना के साथ हृदय में स्थापित कर दिया जाता है, उन्होंने उसे पूर्णघट के दृष्टांत से समझाया है ।" हरिभद्र ने भी स्थापना को चूर्णिकार के समान ही व्याख्यायित किया पर दृष्टांत में 'पूर्ण घट' के स्थान पर 'मूर्त घट' शब्द का प्रयोग किया है । १६ हरिभद्र ने दृष्टांत के विषय में परिवर्तन क्यों किया तथा इसका क्या आधार रहा - इस विषय में कुछ निश्चित नहीं कहा जा सकता, उन्होंने स्थापना का एक अर्थ वासना भी किया है जो उन पर जिनभद्रगणी का प्रभाव परिलक्षित करता है, उन्होंने एक मतांतर का भी उल्लेख किया है । जिसमें धारणा एवं स्थापना का स्वरूप प्रस्तुत स्वरूप से व्यत्यय रूप में प्रतिपादित हुआ है । २०
प्रस्तुत सन्दर्भ में हृदय शब्द विशेष विमर्श की अपेक्षा रखता है, यहां इसका वाच्यार्थ वक्षस्थलमध्यवर्ती हृदय न होकर मस्तिष्क मध्यवर्ती हाइपोथेलेमस होना चाहिये क्योंकि आधुनिक ज्ञान एवं मनोविज्ञान के अनुसार हमारी ज्ञानेन्द्रियों से प्राप्त संवेदनाएं मस्तिष्क के विभिन्न केन्द्रों में संगृहित रहती हैं, हृदय में नहीं, हाइपोथेलेमस को मस्तिष्क का हृदय भी कहा जा सकता है ।२१
४. प्रतिष्ठा
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स्थापित अर्थ का भेद-प्रभेद के साथ प्रतिष्ठापन करना प्रतिष्ठा है । चूर्णिकार ने इसे 'जल में उपल-प्रक्षेप' के उदाहरण से समझाया है । ** हरिभद्र ने भी इसी का अनुकरण किया है |
५. कोट्ठा -
प्राचीनकाल में शालि आदि अनाजों की सुरक्षा के लिये कोठे का प्रयोग होता था । कोठे में रखा गया धान चिरकाल तक खराब नहीं होता था । उसी प्रकार अवधारित अर्थ को स्मृति - प्रकोष्ठों में अविनश्वर रूप में धारण कर रखना कोष्ठ या कोठा
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तुलसी प्रज्ञा
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