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सूत्रों में जहां भक्तिवाद के स्वर गूंज रहे हैं, वही संरभ आदि का क्रम जीवादि तत्वों तथा नयों का व्यवस्थित क्रम उनके बुद्धिवादी स्वरूप को व्यक्त करता है । हां ऐसा लगता है कि वे चार बंधों के क्रम में ऐसा नहीं कर पाये ।
उमास्वाति के बाद के प्रायः सात सौ वर्ष के बुद्धिवादी युग ने जैनों की प्रतिष्ठा में चार चांद लगाये । आज उसी प्रवृत्ति की आवश्यकता है । अनेकांतवाद की चौथी पांचवी सदी का विकास हमें अवक्तव्यता तक तो ले जाता है, पर उसमें निर्णयात्मकता का तत्व कहां है ? यह प्रश्न है ।
३. परिवर्तनशीलताः वैज्ञानिकता की कसौटी
उपरोक्त क्रम - व्यत्यय आगमज़ों की वैज्ञानिक मनोवृत्ति को प्रकट करते हैं । अतः सभी अगमिक मान्यताओं को त्रैकालिक मानना प्राय: समीचीन नहीं प्रतीत होता । ये क्रम परिवर्तन जैनों की वैज्ञानिकता के प्रतीक हैं। क्या हम अवैज्ञानिक या परंपरा वादी हैं ? यदि ऐसा होता तो हम प्रत्यक्ष के दो भेद, परमाणु के दो भेद और प्रमाण की संक्षिप्त एवं विस्तृत परिभाषा न कर पाते ।
४. उत्तर प्रतिपत्ति और दक्षिण प्रतिपत्ति
उपरोक्त क्रम - व्यत्यय क्या उत्तर और दक्षिण-प्रतिपत्ति के परिणाम है ? या दिगंबर - श्वेतांबर मतभेदों के परिमाण हैं ? श्वेतांबर आगम तो मुख्यतः उत्तर प्रतिपत्ति को निरूपित करते हैं और दिगंबर ग्रंथ प्रायः दक्षिण प्रतिपत्ति के प्रतीक माने जाते हैं । इनके आचार्यों में प्राचीन काल में संपर्क के अभाव में यह व्यत्यय स्वाभाविक है । यह तो ऐसा खेल प्रतीत होता है जैसे एक चक्र की प्रारंभिक चर्चा अंतिम सदस्य के पास पहुंचने तक युत्क्रमित हो जाती है ।
५. विकास का अंतिम चरण
उपरोक्त प्रकरण जैन तंत्र के संद्धांतिक विकास के अंतिम चरणों के विकास के प्रतीक । दसवीं सदी तक ऐसी स्थिति आ गई थी कि उसके बाद उनमें विकास संभव नहीं रहा । श्रद्धावाद का युग आ गया |
इन और ऐसे ही अन्य प्रकरणों के कारण आज का बुद्धिवादी व्यक्ति सत्यासत्य निर्णय की अपनी क्षमता और तदनुरूप अनुकरणवृत्ति का उपभोग करना चाहता है । पर उसके सिर पर वीरसेन और वसुनंदि की तलवार लटकी हुई है - सत्यं किमिति सर्वज्ञ एव जानाति' । हम तो भक्तिवादी हैं, हमें शंका या जिज्ञासा का अधिकार नहीं । पर हमें समन्तभद्र और सिद्धसेन भी याद आते हैं जो शास्त्रस्य लक्षणं परीक्षा' कहकर हमारा उत्परिवर्तन करते हैं। वर्तमान संतों और विद्वानों से आशा हैं कि वे नयी पीढ़ी के ऐसे ऊहापोहों के विषय में मार्गदर्शन करेंगे ।
खण्ड २३, अंक ४
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डॉ नंदलाल जैन
जैन केन्द्र, बजरंग नगर
रींबा
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