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चन्दनबाला के घर का आंगन रत्नों की बरसात से ऊबड़-खाबड़ सा हो गया । आकाश के बन्धन टूट पड़े हों ऐसा लगता था। यह योग का प्रभाव तर्क का विषय हो सकता है किन्तु उसके भाग्याकाश में जिस सूर्य का उदय हुआ, वह तो आज भी स्पष्ट है। भगवान महावीर --
अश्रुवीणा, संबोधि, अतुला-तुला आदि में भगवान महावीर का दर्शन होता है । अश्रुवीणा में पादविहारी अभिग्रहधारी, करुणाशील एवं परम-तीर्थकर के रूप में उपस्थित हैं। सौन्दर्य के खनि ---
सुन्दर रूप पाप का कारण नहीं होता बल्कि वह पवित्रता की प्रसवभूमि, तपस्या का पर्यवसित रूप, अनाविलता का निरूपम विग्रह और सदाशयता का अशोष्य आकर बनकर संसार में उपस्थित होता है। पार्वती का रूप-लावण्य का दर्शन पाकर न जाने कितने तापस धन्य-धन्य हो गए। ब्रह्मचारी वेशधारी स्वयं शिव की उक्ति है
यदुच्यते पार्वति ! पापवृत्तये न रूपमित्यव्यभिचारि तद्वचः । तथा हि ते शीलमुदारदर्शने !
तपस्विनामप्युपदेशतां गतम् ।। हे पार्वति ! यह जो कहा गया है कि सुन्दर आकृति सदाचार से कभी विच्छिन्न नहीं होती, यह बात बिलकुल ठीक है। हे रूपवति ! तुम्हारा सद्व्यवहार मुनियों को भी शिक्षा देने वाला है । अतः यह निश्चित है कि रूप शील के अनुसार ही होता है।
वह रूप रूप क्या ? जिसके दर्शन से मन पवित्र न हो जाय काम का काम (कार्य) स्थगित न हो जाए, सम्पूर्ण विभूति का बोध न हो जाए। भागवत के कृष्ण का त्रैलोक्य-सुन्दर रूप को निरखकर मनुष्य को कौन कहे वन्य पशु-पक्षी, हरिणियां भी धन्य हो गयीं
त्रैलोक्य सौभगमिदं च निरीक्ष्य रूपं
यद्गोद्विजद्रुममृगाः पुलकान्यबिभ्रन् ।।" सुन्दर रूप के दर्शन से कलुष समाप्त हो जाते है, शिथिलता शक्ति बनकर आती है तो वासना ऐश्वर्य का रूप धारण कर लेती है । दुःख दैन्य और पीड़ा तीनों मिलकर परमविभूति के रूप में प्रकट होते हैं। भगवान महावीर के अप्रतिम रूप का दर्शन चन्दना ने किया, कब ? जब वह संसार के अन्धकार एवं कष्ट-सागर में आकण्ठ निमज्जित हो चुकी थी, प्रभु-दर्शन हुआ सब कुछ मिल गया। इस स्थिति का वर्णन महाप्रज्ञ इस प्रकार कर रहे हैं
खण्ड २३, अंक ४
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