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स्वर
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२०
श्रुति संख्या श्रुति नाम
शुद्ध, विकृत तीवा
अचल शुद्ध मद्धली
कोमल दयावती रक्तिका
कोमल रोद्री वर्जिका
शुद्ध प्रीति
तीव्र क्षिति
अचल शुद्ध संदीपिनी
कोमल मदंती रम्या
कोमल १२. २१
उग्रा
नि शुद्ध भारतीय संगीत शास्त्रानुसार एक श्रुत्यांतर पर स्वर नहीं होता है, जब कि भरतखण्डेजी ने सा और रे, कोमल ग और शुद्ध ग कोमल ध और शुद्ध ध तथा कोमल नि और शुद्ध नि को एक-एक श्रुत्यांतर पर माना है। हम उनके इस सिद्धांत को स्वीकार कर लेते है पर कोमल रि ष भ वाले सभी रागों के रे एक श्रुति अर्थात् अति कोमल हैं । इसी प्रकार कोमल नि और शुद्ध नि वाले राग जो विभिन्न थाटों के जन्य राग हैं एक-एक श्रुत्यांतर के हैं। अगर ऐसा है तो प्राचीन श्रुत्यांतर, ग्राम, मूर्च्छना आदि सिद्धांत उन विद्वानों की एक बकवास के अतिरिक्त और कुछ नहीं थी।
यह एक ऐसा विषय है जिस पर संगीत विद्वानों को गहराई से विचार कर निर्णय करना है । पूना निवासी पण्डित फिरोझ फ्रामजी संगीत शास्त्री ने श्रुति, स्वर, ग्राम, मूर्च्छना के आधार पर जनक थाट केदार (९ स्वर) के माध्यम से आठ और सात स्वरों के जन्य थाटों की उत्पत्ति द्वारा रागों की उत्पत्ति की है, वह प्रणाली प्राचीन और अर्वाचीन सिद्धांतों के अनुरूप स्वीकार करने योग्य है। भावी पीढ़ी के हितों को ध्यान में रखते हुए संगीत विद्वान सही मार्ग को अपना सके तो शास्त्रीय संगीत का सही स्वरूप सुरक्षित रह सकेगा।
-डा० जयचंद शर्मा निदेशक, श्री संगीत भारती
शोध विभाग, बीकानेर-३३४००१
बम २३, अंक ४
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