________________
सन्दर्भ : १. रत्नपालचरित (आचार्यश्री महाप्रज्ञ की अप्रकाशित कृति) ५.२८ २. अश्रुवीणा ४ ३. संबोधि ४.२२ ४. कुमार संभव ५.१ ५. तत्रैव ५.२ ६. श्री शंकराचार्य विरचित. देव्यापराधक्षमापन स्तोत्र १२ ७. रघुवंश महाकाव्य १६.१७ ।। ८. रत्नपालचरित (आचार्य महाप्रज्ञ की अप्रकाशित कृति) १.३३ ९. तत्रव ३.६,९ १०. कुमार संभव ५.७२ ११. रत्नपालचरित ५.२६-२८ १२. वाल्मीकी रामायण १.२.१५ १३. अभिज्ञान शाकुन्तल १४. मेघदूत २।४२ १५. उत्तररामचरित १.३८ १६. अश्रुवीणा १ १७. संबोधि ४.७ १८. अश्रुवीणा ६ १९. अतुला तुला का पञ्जम विभाग २०. तव, आचार्य स्तुति १२ २१. अश्रुवीणा २४ २२. कालिदास के सौन्दर्य सिद्धान्त और मेघदूत, पृ. ७ २३. तत्रैव प. ८ २४. अभिज्ञान शाकुन्तल २१९ २५. रत्पालचरित १.२० २६. भागवतपुराण १.९.३३ २७. तत्रव १०.२९.४० २८. भक्तामर स्तोत्र १२ २९. अतुला-तुला, पंचम विभाग, आचार्य स्तुति ९ ३०. अश्रुवीणा १० ३१. तत्रैव २१ ३२. ,, ९३ ३३. संबोधि १.१-३ ३४. रत्नपालचरित १.२० ३५. तत्रव १.२२-२५ ३६. ५.४८
-डॉ० हरिशंकर पाण्डेय व्याख्याता, प्राकृत विभाग जैन विश्व भारती संस्थान लाडनूं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org