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(ग) संवत्सर आदि का विवरण
संवत्सर पांच प्रकार का है-१. नक्षत्र संवत्सर २. युग संवत्सर ३. प्रमाण संवत्सर ४. लक्षण संवत्सर ५. शनैश्चर संवत्सर ।
१. नक्षत्र संवत्सर के १२ प्रकार हैं --श्रावण, भाद्रव, आसोज, कार्तिक, मृगसर, पोष, माघ, फाल्गुन, चैत्र, वैशाख, जेठमूल, आषाढ । बृहस्पतिमहाग्रह ऊपर के १२ संवत्सरों में सर्व नक्षत्रमंडलों की गति पूरी करता है।
२. युग संवत्सर के पांच प्रकार हैं-चन्द्र, चन्द्र, अभिवधित, चन्द्र, अभिवधित ।
(क) चन्द्र संवत्सर के २४ पक्ष होते हैं । (ख) चन्द्र संवत्सर में २४ पक्ष होते हैं । (ग) अभिवधित संवत्सर में २६ पक्ष होते हैं । (घ) चन्द्र संवत्सर में २४ पक्ष होते हैं । (ङ) अभिवधित संवत्सर में २६ पक्ष होते हैं । इस प्रकार एक युग में १२४ पक्ष होते हैं।
(३) प्रमाण संवत्सर के पांच प्रकार हैं-नक्षत्र, चन्द्र, ऋतु, आदित्य और अभिवधित ।
(४) लक्षण संवत्सर के पांच प्रकार हैं-सम्यक् प्रकार से नक्षत्र चन्द्रमा के साथ योग करे और सम्यक् प्रकार से ऋतु होवे, न अति गर्म और न अति शीत, बहुत पानी हो । सम्यक् प्रकार से नक्षत्र का चन्द्रमा के साथ योग हो इसका अर्थ होता है-जिस नक्षत्र के नाम से मास का नामकरण है उस नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग हो, जैसे- श्रावण मास में श्रवण नक्षत्र के दिन पूर्णिमा हो, माघ मास की पूर्णिमा को मघा नक्षत्र हो । चन्द्रसंवत्सर___ किसी पूर्णमासी को दो नक्षत्र और किसी पूर्णमासी को तीन नक्षत्र स्पर्श करते हैं विषम नक्षत्र (मास के नाम वाले नक्षत्र के अतिरिक्त दूसरे नक्षत्र) के साथ चन्द्रमा का योग हो, वर्षा बहुत हो पर कटु हो (शीत, ताप आदि अधिक और रोगादि हो)। ऋतु संवत्सर
___ जिस संवत्सर में वनस्पति विषमकाल में अंकुरित हो, बिना ऋतु पुष्प आदि हो, सम्यक् प्रकार से वर्षा न हो । आदित्य संवत्सर
___ अल्प वर्षा से भी पृथ्वी, पुष्प, फल, रस तथा छायादि को अधिक दे, पानी पर्याप्त हो। अभिवधित संवत्सर___सूर्य के तेज से क्षण, लव, दिवस ऋतु आदि का परिणमन हो, ऊचा नीचा सब स्थान जल से परिपूर्ण हो ।
(५) पांचवा 'शनिश्वर' नाम का महा संवत्सर होता है । जिसके २८ भेद हैं-अभिजित्, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वभाद्रपद, उत्तरभाद्रपद, रेवती, अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगसर, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य,
खण्ड २३, अंक ४
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