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कि पंचकुल के सदस्यों का न्यायपालिका के कार्यों मण्डपिकाओं तथा स्थानीय व्यवस्था पर भी प्रभाव होता था। "कर संग्रह का कार्य तो वस्तुतः मण्डपिकाओं द्वारा होता था लेकिन उनकी आय में से पंचकुल के सदस्य दान दे सकते थे। जिसकी पुष्टि वि० सं० १३५६ और वि० सं० १३३५ के हस्तिकुण्डी के अभिलेखों से होती है। पंचकुल गोष्ठी राज्य में भूमिदान आदि देते समय साक्षी का कार्य भी करती थी। राजस्थान के विभिन्न मन्दिरों के अभिलेखों से संकेतित है कि कई बार दानदाता स्थानीय अधिकारियों और पंचकुल को सम्बोधित करके ही दान देते थे। ८
___ अतः उपर्युक्त विवरण के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते है कि हस्तिकुण्डी का जैन तीर्थ प्राचीन काल में ही ख्याति प्राप्त कर चुका था। यहां लम्बे समय से ऋषभदेव तथा रातामहावीर जी की पूजा-अर्चना की जाती रही है। इस मन्दिर के निर्माण एवं जीर्णोद्धार में यहां के राज परिवार एवं जनता ने मुक्त हस्त से आर्थिक सहयोग दिया । मन्दिर की पूजा निमित्त धन की व्यवस्था हेतु राजा ने आज्ञा प्रसारित कर अनेक प्रकार के कर लगाये । जिसकी पुष्टि हस्तिकुण्डी के वि० सं० ९९६ के अभिलेख से होती है । मन्दिर की देखभाल हेतु गोष्ठी एवं पंचकुल जैसी स्वायत संस्थाओं का सहयोग अनवरत रूप से मिलता रहता था ताकि दैनिक पूजा में किसी प्रकार का व्यवधान उपस्थित न हो।
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तुलसी प्रज्ञा
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