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गोष्ठी, पंचायत और पंचकुल के नाम से प्रसिद्ध थीं । बैजनाथ पुरी ने लिखा है कि गोष्ठी उत्तर सभा की तरह संस्था थी। जो दान में दी गई सम्पति से प्राप्त धन की उचित व्यवस्था तथा मन्दिर की देख-भाल करती थी। कई बार वह सरकारी स्तर पर सौंपे गये कार्यों को भी पूरा करती थी। हमारा विचार है कि गोष्ठी समान विचारों वाले, सामाजिक एवं धार्मिक कार्य करने हेतु इच्छा रखने वाले मनुष्यों की संस्था थी। कई बार इसमें राज परिवार के सदस्यों को भी सम्मिलित कर लिया जाता था। प्राय: गावों में निवास करने वाले वयोवृद्ध पुरुष जो नैतिकता, ज्ञान और सम्पति की योग्यता रखते थे, उन्हें जन समर्थन से अथवा मन्दिर के आचार्य की इच्छा से गोष्ठी का सदस्य बनाया जाता था। मन्दिर के निर्माण कर्ता भी प्रायः अपनी इच्छानुसार गोष्ठी का निर्माण कर देते थे। गोष्ठी के सदस्य मिलकर मन्दिर का जीर्णोद्वार/उत्सव सम्पन्न करवाते, धार्मिक प्रवचन एवं यात्राएं आयोजन का कार्य करते थे । गोष्ठी मन्दिर हेतु प्राप्त धन के संरक्षण एवं उपभोग की भी उचित व्यवस्था करती थी। हस्ति कुडी के अभिलेखों से स्पष्ट है कि वि. सं. १०५३ विक्रमी को माघ सदी १३ रविवार पुष्य नक्षत्र में जब ऋषभ देव की प्रतिष्ठा की गई उस समय गोष्ठी के सदस्यों ने भी श्रावकों के साथ अपने अपने अशेषकर्मों का क्षय करने के लिये और अपनी संतान को संसार सागर से पार उतारने के लिये न्याय से उपार्जित धन से यह प्रतिष्ठा करवाई।" .
हस्तिकुडी की गोष्ठी भी राजस्थान के अन्य मन्दिरों की गोष्ठियों की तरह इस जैन नीर्थ की व्यवस्था की देख-भाल कर उसके आर्थिक क्रिया कालपों पर अपना पूर्ण नियन्त्रण रखती थी।
__ हस्तिकुडी के वि. सं. १३३५ के अभिलेख में पंचकुल नामक संस्था का उल्लेख भी विचारणीय है । पंचकुल आधुनिक पंचायत का ही प्रारम्मिक स्वरूप था।" हस्तिकूण्डी के विवेचित शिलालेख में पंचकूल के सदस्यों के नाम दिये गये हैं जो इस प्रकार है:--- मंठ पिकाया भां पाटहड भावा (?) पवरा, मंह सजन उ मह धीणा उधपसिंह उब देवसिंह प्रभूति पुचकुलेन । ३२ इसका अर्थ डा० सोहन लाल पटनी ने इस प्रकार किया है ॐ संवत १३३५ वि. के श्रावण वद १ सोमवार के दिन सेवाड़ी मंडप के भाया, हटा, भावा पयरा, वयोवृद्ध सज्जन जी, धीणाजी ठा० धनसिंह जी, ठा० देव सिंहआदि पंचों (पंचकुल के सदस्यों) ने राता-महावीरजी के मन्दिर में ध्वजाचढाई एवं २४ द्रम प्रतिवर्ष ये लोग देंगे व परम्परा का पालन करेंगे।" एक अन्य शिलालेख के अनुसार संवत १३४५ विक्रमी भाद्रपद वदी ९ शुक्रवार के दिन श्री नाडोल मण्डल के महाराज सावंत सिंह के राज्य में यहां नियुक्त श्री करणा, ललना आदि पंचों (पंचकुल सदस्य) तथा सज्जन हेमा ने हथुण्डी गांव में महावीर भगवान की सेवार्थ प्रतिवर्ष २४ द्रम का दान दिया ।" अभिलेखों में पंचकुल के लिये "तन्नियुक्त" तथा 'तदधिष्ठित' अर्थात् शासक की देखरेख तथा संचालन में, दोनों शब्द मिलते है । पांच सदस्य जिन्हें लोक समर्थन प्राप्त होता था, के अतिरिक्त शासक द्वारा नियुक्त मुख्य अमात्य श्री करणाधिकारी भी इसका सदस्य होता था।" अभिलेखों से ज्ञात होता है
इण्ड २३, अंक ४
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