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जैन पद-साहित्य में पार्श्वनाथ
श्रीमती मुनि जैन
हिन्दी साहित्य में पद साहित्य का विशिष्ट महत्व है। पद का मूल आधार संगीतमय होता है, जो विभिन्न प्राचीन राग-रागनियों पर आधारित होता है । इस में "टेक" का प्रयोग जरूर होता है। हिन्दी साहित्य के मूल सृष्टा जैन कवियों ने पद साहित्य को काफी समृद्ध किया है । जैन परम्परानुगामी पद साहित्य में आराध्य की आराधना का उद्देश्य अन्य उपासकों से थोड़ी भिन्नता लिये हुये रहता है।
तीर्थंकरों की भक्ति में आराधक उनकी उन्नत जीवन झांकी को स्मरण करता है, तथा उनके विशेष गुर्गों की स्तुति करता हुआ अपने को उस योग्य बनने के भाव संजोता है । आत्म निवेदन, अन्त मुखी आनन्द के क्षण जीवन में दुर्लभ होते हैं, जब व्यक्ति अपने आराध्य के साथ अभिन्न प्रतीत होता दिखाई देता है।
तेइसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ ऐतिहासिक पुरुष थे। इनकी लोकप्रियता राम-कृष्ण की तरह लोक जीवन पर गहरी थी अत: उनके जीवन चरित एवं गुणों की स्तुति को पद साहित्य में विशिष्ट स्थान प्राप्त है।
जन-जन की आस्था पारसनाथ के साथ जुड़ी हुई थी। जन कवियों के अतिरिक्त आधुनिक हिन्दी का सूत्रपात करने वाले प्रसिद्ध जैनेतर कवि भारतेन्दु हरिचन्द्र ने भगवान् पारसनाथ की स्तुति में निम्न पद रचा है जो बहुत लोकप्रिय है
तुमहि तो पार्श्वनाथ हो पियारे तड़पन लागै प्राण बगल ते छिनहु होत न न्यारे ।। तुम सौ और पास नहि कोउ मानहु करि पतियारे ।
हरीचन्द खोजत तुम ही को वेद-पुरान पुकारे ।। इस पद में उन्होंने अपनी अंतस की आत्मानुभूति को प्रभु पार्श्व भक्ति में समर्पित किया है । इसके अतिरिक्त उन्होंने तीर्थकर ऋषभदेव तथा अरिहंत देव के प्रति भी अपनी दृढ़ श्रद्धा व्यक्त करते हुये पद लिखे हैं जो भारतेन्दु संग्रह (भाग २) नामक ग्रन्थ तथा उनकी अन्य रचनाओं में संकलित है।
___ कवि झनकलाल (सं० १९४४) ने पार्श्व प्रभु जी और उनकी जन्मभूमि बनारस की महिमा के सम्बन्ध में अनेक कवित्तों की रचना की। उनकी कृति की एक प्रति दिल्ली के श्री पंचायती मंदिर में सुरक्षित है। इसमें कवि ने निम्नलिखित कवित्तों में बनारस की महिमा एवं तीर्थंकर पार्श्वनाथ की मनोहरी छवि का अपनी उन्नत कल्पना से भव्य वर्णन किया है
तुलसी प्रज्ञा, लाडनूं : खंड २३, अंक ४
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