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माघ मास की पूर्णिमा को दो नक्षत्र अश्लेषा और मघा, फाल्गुनी पूर्णिमा को दो नक्षत्र पूर्वाफाल्गुनी और उत्तराफाल्गुनी, चैत्री पूर्णिमा को दो नक्षत्र हस्त और चित्रा, वैशाखी पूर्णिमा को दो नक्षत्र स्वाति और विशाखा, ज्येष्ठामूली को तीन नक्षत्र अनुराधा, ज्येष्ठा और मूल, आषाढ़ी पूर्णिमा को दो नक्षत्र पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढ़ा योग करते
___ इस प्रकार श्रावणी, भाद्रवी, पोषी और ज्येष्ठामूली पूर्णिमा को कुल नक्षत्र, उपकुल नक्षत्र और कुलोपकुल नक्षत्र योग करते हैं, शेष पूर्णिमाओं को कुल नक्षत्र और उपकुल नक्षत्र योग करते हैं ।"
__श्रावण मास की अमावस्या को अश्लेषा और मघा दो नक्षत्र योग करते हैं । भाद्रव मास की अमावस्या को पूर्वफाल्गुनी और उत्तराफाल्गुनी, आसोजी अमावस्या को हस्त और चित्रा, कात्तिकी अमावस्या को स्वाति और विशाखा, मृगसर की अमावस्या को अनुराधा, ज्येष्ठा और मूल, पोष की अमावस्या को पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढा, माघ की अमावस्या को अमिजित, श्रवण और धनिष्ठा, फाल्गुनी अमावस्या को शतभिषा, पूर्वभाद्रपद और उत्तरभाद्रपद, चंत्री अमावस्या को रेवती और अश्विनी, वैशाखी अमावस्या को भरणी और कृत्तिका, ज्येष्ठामूली अमावस्या को रोहिणी और मृगसर, आषाढ़ी अमावस्या को आर्द्रा, पुनर्वसु और पुष्य नक्षत्र योग करते हैं।"
जब श्रावण मास की अमावस्या होती है तब माघ मास की पूर्णिमा होती है । जब माघ मास की पूणिमा होती है तब श्रावण मास की अमावस्या होती है। इसका हेतु है अश्लेषा और मघा नक्षत्र । ये दो नक्षत्र श्रावण मास की अमावस्या के साथ योग करते हैं और माघ की पूर्णिमा के साथ योग करते हैं। जब भाद्रवी पूर्णिमा तब फाल्गुनी अमावस्या होती है । अश्विनी पूर्णिमा होती है तब चैत्रो अमावस्या होती है । जब कात्तिकी पूर्णिमा होती है तब वैशाखी अमावस्या होती है। जब मगसरी पूर्णिमा होती है तब ज्येष्ठामूली अमावस्या होती है जब पोषी पूणिमा होती है तब आसाढी अमावस्या होती है ।
वर्षा ऋतु के प्रथम मास को चार नक्षत्र पूर्ण करते हैं ---उत्तराषाढा, अभिजित्, श्रवण और धनिष्ठा । उत्तराषाढा चौदह अहोरात्रि तक, अभिजित् सात अहोरात्रि तक, श्रवण आठ अहोरात्रि तक और धनिष्ठा एक अहोरात्रि तक रहता है । उस मास में चार अंगुल पुरुष छाया से सूर्य परिभ्रमण करता है । अर्थात् उस महीने के अन्तिम दिन में दो पांव और चार अंगुल अधिक छाया सूर्य के ताप में पड़ती है तब प्रहर दिन आता है।
वर्षा ऋतु के दूसरे मास को चार नक्षत्र पूर्ण करते हैं-धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वभाद्रपद और उत्तरभाद्रपद । धनिष्ठा चौदह अहोरात्रि पयंत, शतभिषा सात अहोरात्रि पयंत, पूर्वभाद्रपद आठ अहोरात्रि पर्यंत और उत्तराभाद्रपद एक अहोरात्रि रहता है। उस मास में सूर्य आठ अंगुल अधिक पुरुष छाया से परिभ्रमण करता है । उस मास के अन्तिम दिन में दो पग आठ अंगुल से पौरिसी होती है। __वर्षा ऋतु के तीसरे मास को तीन नक्षत्रपूर्ण करते हैं-उत्तराभाद्रपद, रेवती
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तुलसी प्रज्ञा
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