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निक्षेप
नय
आचार्य
नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव, नैगम, संग्रह, व्यवहार आचार्य गुणधर नाम, स्थापना, द्रव्य नगम, संग्रह, व्यवहार
सिद्धसेन ऋजुसूत्र नय। भाव निक्षेप ऋजुसूत्र नय
सिद्धसेन चार निक्षेप
जिनभद्रगणी नाम, द्रव्य, भाव
गुणधर नाम और भाव
शब्द नय
गुणधर इस प्रकार नय और निक्षेप दोनों परस्पर जुड़े हुए हैं । इन दोनों के माध्यम से व्यक्ति वस्तु के यथार्थ स्वरूप को समझ सकता है । अपनी सोच को सम्यक् और स्वस्थ बना सकता है। संदर्भ १. आवश्यक मलयगिरीया वृत्ति प. ९० २. सुत्तत्थो खलु पढमो, बीओ निज्जुत्तिमीसितो भणितो।
तइओ य निरवसेसो, एस विही होई अणुओगे ।। नन्दी १२७।५ ३. उत्तराध्ययन चूणि पु० ८ ४. विशेषावश्यक भाष्य-१३८३ ५. शास्त्रसमीपीकरणं शास्त्रस्याभ्यासदेशानयनमित्यर्थः
उत्तराध्ययन चूणि पृ० ९ ६. बृहत्कल्प भाष्य १-१० २ ७. आवश्यक चूणि १ पृ. ८४ ८. उत्तराध्ययन वृत्ति १४ ९. उत्तराध्ययन नियुक्ति १
-साध्वी विमल प्रज्ञा
पण २३४
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