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अनुयोग द्वार सूत्र में तद्व्यतिरिक्त के तीन भेद है-१. लौकिक २. कुप्रावनिक ३. लोकोत्तर ।
इन भेदों से यह संभावना की जाती है कि ज्ञ शरीर और भव्य शरीर के अतिरिक्त जितने विकल्प बनते है वे तव्यतिरिक्त के अन्तर्गत समाहित हो जाते है।
इन तीन निक्षेपों के अतिरिक्त जो निक्षेप प्राप्त हुए उन्हें उत्तर शब्द से घटित
किया है
क्षेत्र उत्तर- मेरु आदि की अपेक्षा उत्तर में स्थित उत्तर कुरू । क्षेत्र का एक अर्थ खेत भी है, इस अपेक्षा से जो पहले शालि-क्षेत्र था बाद में वही इक्षु-क्षेत्र बन गया।
दिशा उत्तर-यह उत्तर दिशा है, दक्षिण दिशा की अपेक्षा से । ताप क्षेत्र उत्तर-ताप दिशा की अपेक्षा । जैसे सबके उत्तर में । प्रज्ञापक उत्तर-प्रज्ञापक के बायें भाग में स्थित व्यक्ति। प्रति उत्तर-एक दिशा में स्थित देवदत्त और यज्ञदत्त में देवदत्त से परे यज्ञदत्त उत्तर। काल उत्तर-समय के उत्तर में आवलिका। संचय उत्तर-धान्य राशि के ऊपर काष्ठ । प्रधान उत्तर-इसके तीन विकल्प है-१. सचित्त २. अचित्त ३. मिश्र ।
१. सचित्त उत्तर-द्विपद में उत्तर तीर्थकर । २. अचित्त उत्तर-चिन्तामणि ।।
३. मिश्र उत्तर-गृहस्थ अवस्था में अलंकार युक्त तीर्थङ्कर । ज्ञान उत्तर-केवलज्ञान, निरावरणता के कारण । क्रम उत्तर-परमाणु से उत्तर है द्विप्रदेशी स्कन्ध । गणना उत्तर-एक के उत्तर में दो। भाव उत्तर-औदयिक आदि पांच भावों में क्षायिक भाव उत्तर है।
निक्षेप के अनेक विकल्प बन सकते हैं। जिसे जितना ज्ञात हो उतने ही विकल्प बना सकता है। इसलिए जीत भाष्य में निक्षेप शब्द का निर्वचन करते हुए बताया गया है :
नि शब्द के तीन अर्थ-१. ग्रहण २. आदान ३. अधिक । क्षेप-प्रेरित करना। जिस वचन पदति में नि-अधिक, क्षेप-विकल्प हो उसका नाम निक्षेप है।
निक्षेप और नय की संबंध योजना-निक्षेप विचार की पृष्ठभूमि और नय दूसरों के अभिप्राय को जानना । दूसरे शब्दों में हम कह सकते है-निक्षेप और नय में विषय-विषयी संबंध है। निक्षेप और नय की संबंध-योजना में अलग-अलग आचार्यों के भिन्न-भिन्न मत हैं
तुलसी प्रशा
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