Book Title: Tulsi Prajna 1998 01
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 12
________________ जत्थ य ज जाणेज्जा णिक्खेवं णिक्खिवे हिरवसेस । जत्थ वि य न जाणेज्जा चउक्कयं णिक्खिवे तत्थ ॥ ___ अर्थात् --निक्षेप करने वाला यदि समस्त निक्षेपों को मानता है तो वहां सभी निक्षेपों से वस्तु का निरूपण करना चाहिए जहां सब निक्षेपों का ज्ञान न हो वहां कम से कम चार निक्षेप अवश्य करने चाहिए। सामान्य रूप से निक्षेप के चार भेद होते हैं-१. नाम २. स्थापना ३. द्रव्य ४. भाव । उत्तराध्ययन नियुक्ति में उत्तर शब्द को १५ निझेपों से व्याख्यायित किया गया है। १. नाम २. स्थापना ३. द्रव्य ४. क्षेत्र ५. दिशा ६. तापक्षेत्र ७. प्रज्ञापक ८. प्रति ९. काल १०. संचय ११. प्रधान १२. ज्ञान १२. क्रम १४. गणना १५. भाव। किसी भी वस्तु की पहचान का प्रथम माध्यम है - नाम और रूप। बिना नाम और रूप के कोई भी वस्तु व्यवहार में उपयोगी नहीं बन सकती। व्यवहार चलाने के लिए किसी संकेत पद्धति का विकास करना होता है। व्यवहार काल में किसी वस्तु को समझने और समझाने के लिए कोई नाम गढा जाता है, किसी आकार में बांधा जाता है अथवा किसी वस्तु में उसे आरोपित किया जाता है जिससे वह उस वस्तु का बोध करा सके । कषाय पाहुड में सामान्य के दो प्रकार बतलाये हैं--१. तद्भाव सामान्य २. सादृश्य सामान्य । तद्भाव सामान्य-... वस्तु का अपना सामान्य है। सादृश्य सामान्य वस्तु का प्रतिबिम्ब फोटो आदि, जो वस्तु का बोध कराता है। नाम में दोनों विकल्प पाए जाते हैं। स्थापना में तद्भाव सामान्य का अभाव है वहां केवल सादश्य सामान्य ही है । इस प्रकार नाम यावत्कथिक होता है, स्थापना यावत्कथिक और इत्वरिक-दोनों प्रकार की होती है। द्रव्य निक्षेप- जो भूत और भावी पर्याय का कारण है, वर्तमान में अनुपयुक्त है, वह द्रव्य निक्षेप है । हमारे विचार का आधार है-स्मृति और कल्पना । इतिहास अतीत की स्मृति कराता है, व्यक्ति के लिए प्रकाश स्तम्भ का कार्य करता है । यह विचार का प्रथम कोण है । विचार का दूसरा कोण है-कल्पना। कोई भी व्यक्ति कार्य करने से पहले उसकी योजना बनाता है, कल्पना करता है। इन दो कोणों के आधार पर द्रव्य निक्षेप के 'ज्ञ' शरीर और भव्य शरीर-ये दो विकल्प निष्पन्न हुए हैं। 'ज्ञ' शरीर का अर्थ है-अतीत में जानने वाले का शरीर। जैसे कोई व्यक्ति अतीत में उत्तर शब्द को जानता था लेकिन वर्तमान में उसका शरीर है। उसे कहते हैं उत्तर शब्द को जानने वाले का शरीर । भव्य शरीर- भविष्य में जानने वाले का शरीर । जैसे यह व्यक्ति भविष्य में उत्तर शब्द को जानेगा। द्रव्य निक्षेप का तीसरा विकल्प है-तद्व्यतिरिक्त । उत्तराध्ययन वृत्ति में तव्यतिरिर के तीन भेद हैं-१. सचित्त-पिता के उत्तर में पुत्र । २. अचित्त-दूध का उत्तरवर्ता दही । २. मिश्र--मां के शरीर से उत्पन्न रोम आदि युक्त सन्तान । उत्तराध्ययन नियुक्ति एवं कषाय पाहुड में तद्व्यतिरिक्त के दो भेद अन्य प्रकार से उपलब्ध होते हैं-१. कर्म २. नो कर्म । खण २३ अंक ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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