Book Title: Tulsi Prajna 1998 01
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ नितर कर सामने आ जाता। अनुयोग पद्धति में सब समस्याओं का समाधान है। बौद्ध क्षणसन्तति को मानते हैं। उनके सामने एक समस्या आती है--एक वस्तु १०. वर्ष तक एकरूप में रही फिर पूर्ण नष्ट हो गई इसका हेतु क्या है ? बौद्धों के पास इसका समाधान नहीं है। लेकिन जैन दर्शन के पास इसका समाधान है। जैन दर्शन में दो प्रकार के पर्याय हैं ----१. व्यञ्जन पर्याय २. अर्थ पर्याय । व्यञ्जन पर्याय दीर्घकालिक है, स्थल है। अर्थ पर्याय वर्तमानवी है। व्यन्जन पर्याय से यह समस्या स्वतः सुलझ जाती है। अनुयोग का प्रथम द्वार है ... उपक्रम । उत्तराध्ययन चूणि में उपक्रम को परिभाषित करते हुए लिखा है-- उपक्रम वह है, जो शास्त्र को समीप लाता है --अध्येता के समक्ष पृष्ठभूमि के रूप में ग्रन्थ को प्रस्तुत करता है। इससे श्रोता और पाठकों को ग्रन्थ का प्रारम्भिक परिचय प्राप्त होता है। उपक्रम-उपोद्घात के बिना व्यक्ति ग्रन्थ की विषयवस्तु को नहीं जान सकता और न ही उसमें प्रवृत्त होने की उत्साहित हो सकता । वृहत्कल्पभाष्य में कहा गया है-अन्धेरे कमरे में रखी हुई वस्तुएं दीपक के प्रकाश में दिखाई देती हैं, इसी प्रकार शास्त्र में निहित अर्थ उपोद्घात के द्वारा अभिव्यक्त होता है।' जिस प्रकार मेघों से आच्छादित चन्द्रमा आकाश में नहीं चमकता है इसी प्रकार शास्त्र भी उपोद्घात के बिना उपयोगी नहीं बनता।" अनुयोग का दूसरा द्वार है-निक्षेप । निक्षेप का अर्थ है-न्यास करना । सूत्रकृतांग चूणि में कहा है जिसका स्थापन नियत और निश्चित होता है, वह निक्षेप है। शब्द निरीक्षण की पद्धति का नाम निक्षेप है । वस्तु पहचान का माध्यम शब्द है । अर्थ और शब्द का वाच्य-वाचक संबंध है। इस संबंध स्थापना का उद्देश्य है-व्यवहार का निर्वहन । एक शब्द के अनेक अर्थ होते हैं, वस्तु के पर्याय अनन्त हैं लेकिन शब्द ल.वों तक ही हैं इस स्थिति में वक्ता किस शब्द के द्वारा किस अर्थ को लक्षित कर अपनी बात कह रहा है। इस समस्या के समाधान में ही निक्षेप का महत्त्व है। निक्षेप भाषा प्रयोग की पद्धति है। विचार संप्रेषणीयता में किसी भी प्रकार की कठिनाई न हो, अस्पष्टता या भ्रान्ति न रहे...इस दष्टि से निक्षेप पद्धति अत्यन्त उपयोगी है। जगत् के व्यवहार तीन प्रकार से होते हैं.--१. अर्थाश्रयी २. ज्ञानाश्रयी ३. शब्दाश्रयी । इस अनंत धर्मात्मक वस्तु के संव्यवहार के लिए इन तीनों व्यवहारों को आधार बनाना निक्षेप है। वस्तु के यथार्थ स्वरूप को समझाने के लिए उसके शाब्दिक, आरोपित, भूत, भावी और वर्तमान पर्यायों का विश्लेषण करना जरूरी है । निक्षेप क्यों करना चाहिए ? निक्षेप की उपयोगिता क्या है ? इन प्रश्नों के परिप्रेक्ष्य में गुरुदेव श्रीतुलसी ने "भिक्षु न्याय कणिका" में इसके दो प्रयोजन बतलाए हैं ---१. अप्रस्तुत अर्थ का निराकरण २. प्रस्तुत अर्थ का विधान । उत्तराध्ययन वृहद्वृत्ति में अन्य दो कारणों का उल्लेख है-१. शिक्षार्थी की मति को व्युत्पन्न करना । २. सब वस्तुओं के सामान्य और विशेष धर्मों का प्रतिपादन। निक्षेप के कितने प्रकार हो सकते हैं ? इस प्रश्न के समाधान में सूत्रकार ने अनुयोगद्वार में कहा है ३८० तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 200