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ओघ उपधि के दो प्रकार हैं(१) गणना प्रमाण (२) प्रमाण, प्रमाण औपग्रहिक उपधि के भी दो प्रकार हैं(१) गणना प्रमाण (२) प्रमाण, प्रमाण
जो स्थायी रूप से अपने पास रखा जाता है उसे ओघउपधि कहा जाता है और जो विशेष कारणवश रखा जाता है उसे औपग्रहिक उपधि ।
शीत से पीड़ित मुनि अग्नि सेवन न करें। उसके लिए वस्त्र और पात्र के अभाव में ग्रहित वस्तु के परिशाटन से जीव हिंसा की संभावना न बने । उसके लिए पात्र का विधान किया है।
जिनकल्प और स्थविर-कल्प दोनों प्रकार की साधना करने वाले साधकों के लिए वस्त्रों का विधान इस प्रकार हैजिनकल्पी के लिए बारह
स्थविरकल्पी के लिए चौदह १ पात्र २. पात्र बन्ध ३. पात्र स्थापना ४. पात्र केसरिका ५. पटल ६. रजस्त्राण ७. गोच्छक ८. तीन प्रच्छादक ९.प्रच्छादक १०. प्रच्छादक ११. रजोहरण और १२. मुखवस्त्रिका १३.
मात्रक और १४.
चोलपट्टक' जिणा वारस रुवाइं, थेरा चउद्दसरुविणो ।
अज्जाणं पन्नवी संतु, अ ओ उडं उवग्गहो ॥६७२।। जिन कल्पिक स्थविरकल्पिकों की तरह आर्याओं के लिए पच्चीस उपधियों का उल्लेख है। बारह उपकरण पूर्ववत् है । अतिरिक्त उपकरण इस प्रकार है :
१३. मात्रक १४. कमदक-साध्वियों का पात्र विशेष १५. उग्गणंतग-गुह्य अंग की रक्षा के लिए नाव के आकार का होता है ! १६. पट्टक -- यह वस्त्र जांघिया के आकार का होता है। १७. उद्धोरुग-पट्टक के ऊपर पहना जाता है।
बंर २१, बंक ३
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