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मगध में काण्व-शासन और युगपुराण
0 उपेन्द्रनाथ राय
शासनारम्भ
शुङ्गवंश के अन्तिम राजा देवभूमि (विष्णु और भागवत० में देवभूति) को मारकर उसका मन्त्री वसुदेव राजा बना। चूंकि वह काण्व गोत्र का था अतः मगध का यह राजवंश काण्ववंश के नाम से परिचित है। इस सम्बन्ध में मत्स्यपुराण का कहना है कि बचपन से ही व्यसन में पड़े हुए राजा देवभूमि को मारकर उसका ब्राह्मण अमात्य वसुदेव राजा बना । वायु और ब्रह्माण्ड भी वही बात कहते हैं ।' यह हत्या किस प्रकार की गई इस पर पुराण कोई प्रकाश नहीं डालते । इस सम्बन्ध में हमारी जानकारी का एकमात्र स्रोत बाण का 'हर्षचरित' है जिसमें कहा गया है कि मन्त्री वसुदेव ने दासी की कन्या को रानी के वेश में कामातुर राजा देवभूति के पास भेज कर उसको मरवा डाला-अतिस्त्रीसङ्गरतमनङ्गपरवशं शुङ्गममात्योवसुदेवो देवभूतिम् दासीदुहित्रा वीतजीवितमकारयत् ।। इससे ज्ञात होता है कि देवभूमि रानी के वेश में पराई स्त्रियों को अपने पास बुलाया करता था ताकि सब कुछ गुप्त रहे । इसे जानने वाले अमात्य ने किसी दासी की लड़की को सजाकर भेज दिया जिसने विषप्रयोग या अन्य किसी प्रकार राजा को मार डाला । घटक और शासनाविधि
___ काण्ववंश में कुल चार राजा हुए, इसमें कोई मतभेद नहीं है। इन राजाओं के नाम हैं -१. वसुदेव २. भूमि मित्र ३. नारायण और ४. सुशर्मा। इस राजवंश की शासनावधि सभी पुराण एक स्वर से ४५ वर्ष बताते हैं। व्यक्तिशः शासनावधि में कुछ मतभेद है जिसकी चर्चा आगे चलकर करेंगे। ये सभी राजा 'प्रणतसामन्ताः' कहे गये हैं जिससे इनका प्रतापी होना सिद्ध है । इनको धार्मिक भी कहा गया है। स्थितिकाल
पुराणों के अनुसार परीक्षित् के जन्म से महापद्मनन्द के अभिषेक तक १५०० वर्ष बीते । फिर नन्द-शासन १३६ वर्ष, मौर्य-शासन १३७ और शुंगकाल ११२ वर्ष रहा । इसके बाद काण्ववंश का ४५ वर्षीय काल आता है। अतः ३१३७ -- १८८५= १२५२ ई० पू० से काण्ववंश का शासन आरम्भ होकर १२०७ ई० पू० में समाप्त होता है।
सड २१,बंक ३
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