________________
स्थलों पर किया है।५८
राजा के लिए भगवत्कलामृत (५-१५-९) कलयावतीर्ण (४-१६-१०) आदि शब्दों का प्रयोग किया गया है । भगवान् श्रीकृष्ण ही भू रक्षणार्थ पृथ
के रूप में अवतरित हुए। (ग) बिवाह--मनुस्मृति में प्रतिपादित ब्राह्म, देव, आर्ष, प्रजापत्य, आसुर,
गान्धर्व, राक्षस, पैशाच आदि विवाह भेदों में से भागवत में अधिकांश ब्राह्मविवाह का ही प्रतिपादन किया गया है। 'उत्तम सन्तान से लोकमङ्गल सम्पादित होता है' इस धारणा से भावित होकर लोग श्रेष्ठ विवाह संस्कार सम्पादित करते थे । अन्य विवाहों का भी उल्लेख यत्र तत्र मिलता हैउषा-अनिरुद्ध एवं श्रीकृष्ण का विवाह प्रेम विवाह के उदाहरण हैं।
उस समय अन्तर्जातीय एवं बहुविवाह प्रथा भी प्रचलित थी। भगवान् श्रीकृष्ण के अनेक विवाहों का उल्लेख मिलता है। प्रजापति कश्यप की दो पत्नियां ---- अदिति और दिति, उत्तानपाद की दो रानियां-सुरुचि और सुनीति तथा दक्ष प्रजापति के अनेक पत्नियों का उल्लेख मिलता है।"
___ यत्र तत्र स्वयंवर का भी उल्लेख मिलता है। राजा नग्नजित् की प्रतिज्ञा थी कि स्वयंवर में एकसाथ सात बैलों को जो नाथ देगा उसी के साथ उनकी कन्या. नग्नजिती का विवाह होगा। भगवान् ने बैलों को नाथ कर उनकी प्रतिज्ञा पूर्ण की।
बलपूर्वक विवाह भी तत्कालीन समाज में प्रचलित था। भगवान् श्रीकृष्ण ने मित्रविन्दा का बलपूर्वक अपहरण कर उसके साथ विवाह रचाया था ।।
इस प्रकार भागवत में अनेक प्रकार के विवाह का वर्णन मिलता है। (घ) शाप और वरदान --- श्रीमद्भागवतीय आख्यानों में विभिन्न स्थानों पर शाप
और वरदान आए हैं। शाप और वरदान दोनों में भागवतकार की मंगलचेतना ही अनुस्यूत है । शाप भी मङ्गलदायक ही है। गजेन्द्र, वृत्रासुर आदि को शाप नहीं मिला होता तो संसार में उन्हें कौन जानता और न प्रभु चरणों में उनकी भक्ति ही पूर्ण होती। नलकुबर-मणिग्रीव अत्यन्त भोगासक्त हो गए थे। शाप के कारण ही प्रभु श्रीकृष्ण के द्वारा उनका उद्धार हुआ।
आख्यानों में उपन्यस्त निम्नलिखित शाप-प्रसंग प्रमुख हैं१.१-१३-१५ में माण्डव्य ऋषि के द्वारा यमराज को शापित करना, जिससे
यमराज विदुर के रूप में उत्पन्न होते हैं। २. ३-१५-३४---सनकादि कुमारों द्वारा जय-विजय को शाप दिया जाना वर्णित
३. ४-२-१८-दक्ष द्वारा शिव को शाप तथा ४-२-२०, २१ में नन्दीकेश्वर
द्वारा दक्ष को शाप ।
बंर २१, अंक ३
३३७.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org