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रूप छाया, हिन्दी अर्थ, संदर्भ और अंग्रेजी - लेटिन नामों के साथ अनेकों चित्र भी जुटा लिए । स्थान-स्थान पर विमर्श, विवरण और पाठान्तर देकर मुनिश्री ने गुल्म, लता, पर्वक, वलय, हरित, धान्य, जलरूह, कुहण (भूमि स्फोट) आदि की परिभाषाओं के अनुरूप इन सभी वनस्पति की अकारादि अनुक्रम में प्राकृत एवं हिन्दी नाम सूची और चित्र सूची दी है। उन्होंने अपने कोश को प्रामाणिक बनाने के लिए विभिन्न आयुर्वेदीय शब्दकोश, कैयदेव निघंटु, धन्वन्तरि निघंटु, निघंटु आदर्श, निघंट, शेष, भाव प्रकाश निघंटु, मदनपाल निघंटु, राज निघंटु, शालिग्राम निघंटु, सोढल निघंटु आदि के साथ-साथ शालिग्रामोषधशब्दसागर, वैद्यक शब्दसिंधु और वनौषधि रत्नाकर, भारतीय वनौषधि ( बंगला ) धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक इत्यादि का भरपूर उपयोग किया है ।
आयुर्वेद की एक उक्ति है—
गोपालास्तापसाव्याधाचान्ये
वनचारिणः । मूलजातिश्च ये तेभ्यो भेषजव्यक्तिरिष्यते ।।
कि वनस्पतियों को प्रत्यक्ष रूप में जानने वाले गोपाल, तापस, व्याध और वनेचर आदि मूल जातियों के लोगों से वनस्पतियों का परिचय प्राप्त करना चाहिए । इस उक्ति के अनुसार कार्य करके एवं स्वविवेक से वनस्पति वेत्ताओं ने अनेकों निघंटु कोशादि बनाए हैं जिनमें संप्रति धन्वन्तरि निघण्टु ( गुडुच्यादि) और भावप्रकाश निघण्टु ( हरीतक्यादि ) विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। अनेकों और भी वनस्पति परिचय के विविधानेक प्रयास हुए हैं किन्तु भारतीय वाङ्मय का अतीव महत्त्वपूर्ण अंग होते हुए भी जैनागम साहित्य प्रायः अज्ञात और शोधार्थियों के लिए दुष्प्राप्य रहा है । इस अछूते साहित्य से वनस्पतियों का निर्व्यूहन निस्संदेह निगूढ़ निकष कहा जा सकता है ।
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काश्यप संहिता के अनुसार
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ओष का अर्थ है रस, वह जिसमें धारण होता है वह ओषधि है और ओष से आरोग्य का आधान होता है, इसलिए औषधि, औषध है । इसके अलावा औषध के प्रयोग करने से रोग पुनः नहीं होगा, इसलिए अगदत्व है - अगदत्वं च युक्तस्य गदानामपुनर्भवात् । साधारण अर्थ में भी चाणक्य सूत्र -- कक्षादपि औषधं गृह्यते = तृण से भी औषधि ग्रहण की जाती है के अनुसार यदि किसी द्रव्य से चिकित्सोपयोगी द्रव्य निकलता हो तो मूल द्रव्य तुच्छ या क्षुद्र होने पर भी उसका मूल्य कम नहीं होता । चरक के शब्दों में तो संसार के द्रव्य-संसार में ऐसा कोई द्रव्य ही नहीं है जिसका विविध युक्ति और प्रयोजना से औषध के लिए प्रयोग नानौषधि भूतं जगति किञ्चिद् द्रव्यमुपलभ्यते तां तां तमभिप्रेत्य ।
इस दृष्टि से ४५० वनस्पतियों का जैनागमों में प्रयोग-संदर्भ खोज निकालना
तुलसी प्रज्ञा
ओषो नाम रसः सोऽस्यांधीयते यत्तदोषधिः । ओषादारोग्यमाधत्ते तस्मादोषधिरोषधः ॥
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नहीं होता होयुक्तिमर्थं च तं
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