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की प्रशस्ति गाई गई है। उपन्यास की कथा का सार स्वयं मनोरमा के शब्दों में इस प्रकार है-- "भैया ! यहां कौन किसका अपराधी है। हम स्वयं जैसे बीज बोते हैं वैसे ही फल मिलते हैं। अपने-अपने कर्मानुसार सुख और दुःख हम पाते हैं। आप राजकुमार हैं आपके पास प्रजा की सुरक्षा के अधिकार हैं आप उनका सदुपयोग करें । प्रजा की बहन/बेटी/बहु को अपने ही परिवार का अंग समझकर उन पर कुदृष्टि न डालें।"
'तेरी महिमा मेरे गीत'--. ऐलक उदार सागर की कृति है जिसमें पं० भागचन्दकृत महावीराष्टक आचार्य श्री कुमुदचन्द्र विरचित कल्याण मंदिर स्तोत्र एवं श्रीमान तुंगाचार्य रचित भक्तामर स्त्रोत्र का पद्यानुवाद है और साथ में पं० पन्नालाल एवं पं० हीरालालकृत गद्यानुवाद भी प्रकाशित है। ७. नीरज पाटनी द्वारा भेजे प्रकाशन- नन्दीश्वर-भक्ति, स्तुति सरोज, भावभक्ति, सर्वोदय सार इत्यादि।
। प्रस्तुत प्रकाशनों में प्रथम नन्दीश्वर भक्ति आचार्यश्री देवनंदि की कृति है जिसमें अतिशयक्षेत्र पिसनहारी मढिया की कीर्ति गाई गई है। सुललित भावपूर्ण संस्कृत श्लोकों का आचार्यप्रवर विद्यासागरजी महाराज ने मनोहारी छन्द रचना में पद्यानुवाद किया है।
_ 'स्तुति-सरोज' भी आचार्य विद्यासागर द्वारा दिगम्बर आचार्य शांतिसागर महाराज, आचार्य वीरसागर महाराज आचार्य शिवसागर महाराज एवं आचार्य ज्ञानसागर महाराज को श्रद्धाञ्जलि स्वरूप भेंट की गई काव्याजंलियां हैं। वसंततिलका, मन्दाक्रान्ता जैसे छन्दों में भक्ति विह्वल हृदय से प्रस्तुत ये काव्याजलियां निस्संदेह भावपूर्ण आत्म समर्पण हैं -
माथारूपी, शिवफल तजूं, आपके पादकों में, श्रद्धारूपी, स्मित-कसुम को, मोचता हूं तथा मैं । मुद्रा है जो, शिवचरण में, और रहे नित्य मेरी,
प्यारी मुद्रा, ममहृदय में, जो रहे हृद्य तेरी ॥ भावभक्ति- शीर्षक प्रकाशन में चौबीस तीर्थंकर स्तवन के बाद 'विद्यावंदना शतक' एवं 'विद्यासागर चालीसा' प्रकाशित किया गया है। श्रमणश्री उत्तमसागरजी कृत यह रचना गुरुभक्ति में समर्पित है और श्री दिगम्बर जैन वीर विद्या संघ ट्रस्ट, गुजरात द्वारा प्रकाशित है।
'सर्वोदयसार' में आचार्य श्री विद्यासागरजी के प्रवचनों का सार संक्षेप है जो श्री दिगम्बर जैन सर्वोदय तीर्थ कमेटी, अमरकंटक द्वारा प्रकाशित है। ८. वन्दना - जैन मिलन, लखनऊ का प्रकाशन ।
स्व० फूलचन्द जैन 'पुष्पेन्दु' का निधन सन् १९६६ में हो गया था। उनके आध्यात्मिक काव्यों से डॉ. महावीरप्रसाद जैन ने कतिपय भजन, गीत आदि का संकलन किया है जो भारतीय जैन मिलन, लखनऊ शाखा द्वारा प्रकाशित हुआ है । 'बसंत बहार' के बाद पुष्पेन्दु की यह दूसरी कृति छपी है । इसमें वन्दना के साथ जय
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तुलसी प्रज्ञा
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