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विवेचन उपलब्ध होता है । आष्टांगिक योगमार्ग, पातञ्जल योगसूत्र की अपेक्षा किंचित् विस्तार से यहां विवेचित है। पांच-पांच यम-नियमों के स्थान पर श्रीमद्भागवत में १२-१२ यम-नियम प्रतिपादित किए गये हैं । आसन प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि का वर्णन भी मिलता है ।"
(च) यज्ञ - भागवतीय आख्यानों में अनेक स्थलों पर विभिन्न प्रकार के यज्ञों का वर्णन मिलता है । प्रभुकृपा, प्रजा की समृद्धि, धनधान्य की प्राप्ति, ऐहिक एवं पारलौकिक अभ्युदय के लिए विभिन्न अवसरों पर यज्ञ सम्पादित किए थे । राजा पृथु प्रभु कृपा की प्राप्ति के लिए, प्रजापति दक्ष प्रजासृष्ट्यर्थ यज्ञ का विधान करते हैं । युधिष्ठिर द्वारा सम्पादित राजसूय यज्ञ का भी विवेचन उपलब्ध होता है । भागवतीय आख्यानों में यज्ञ दो प्रकार के मिलते हैं
(i) प्रभु प्रेम की प्राप्ति के लिए सम्पादित यज्ञ, (ii) लौकिक अभ्युदय की प्राप्ति के लिए यज्ञ ।
राजा अम्बरीष, पृथु आदि द्वारा सम्पादित यज्ञ प्रभु प्रेम की प्राप्ति के लिए है तथा प्रजापति लौकिक अभ्युदय अथवा प्रजासृष्टि के लिए यज्ञ अनुष्ठित करते हैं । मान्धाता ने अनेक यज्ञों के द्वारा स्वयं प्रकाश, सर्वदेव, स्वरूप, सर्वात्मा और इन्द्रियातीत प्रभु की आराधना की थी ।" राजा ययाति ने समस्त वेदों के प्रतिपाद्य यज्ञस्वरूप भगवान् का प्रभूत दक्षिणावाले यज्ञों के द्वारा यजन किया था । *" राजा बलि ने प्रभु प्रेम की प्राप्ति के लिए अनेक यज्ञों का अनुष्ठान किया था ।
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(छ) तप- श्रीमद्भागवतीय आख्यानों में अनेक स्थलों पर विविध प्रकार के तप का वर्णन मिलता है । कर्दम प्रजापति और देवहूति, कपिल, ध्रुव, प्रह्लाद, अम्बरीष, रन्तिदेव, दक्षप्रजापति आदि पात्र विभिन्न कारणों से या विभिन्न प्रयोजन से तप की ओर प्रवृत्त दिखाई पड़ते हैं । सृष्टि रचना में सामर्थ्य की प्राप्ति के लिए भगवान् विधाता ब्रह्मा को तप करने के लिए उद्यत करते हैं ।" विमाता द्वारा अनादृत होकर ऋषि नारद द्वारा बताए गये स्थान पर बालक ध्रुव कठोर तपश्चरण कर भगवान् का अनन्यप्रेम प्राप्त कर लेता है । बालक ध्रुव के कठोर तपश्चरण से प्रसन्न स्वयं भगवान् ही उसके पास पधारते हैं ।" राजा पृथु अन्त काल में कठोर तपश्चरण द्वारा भवबन्धन का उच्छेदन कर ब्रह्ममय हो गये । "
तप के द्वारा अन्तःकरण की शुद्धि और ब्रह्मानन्द की प्राप्ति होती है ।" ऋषि मार्कण्डेय की तपस्या जगद् विख्यात है । २ इस प्रकार विभिन्नस्थलों पर तपश्चरण का उल्लेख मिलता है ।
(ii) लौकिक
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- इस वर्ग में आख्यानों में विद्यमान लौकिक विषयों को रखा गया है । युद्ध, राजधर्म दण्डविधान, विवाह, लोकप्रथाएं, लोकविश्वास लोकमङ्गल आदि
खण्ड २१, अंक ३
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