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उपरे एक जोजन ने २४ मे भागे अलोक सू अड रह्या छे ॥५॥
हिन्दी - सिद्धों जीव कहां रहते हैं वह कह रहे हैं। चौदह रज्जू वाले लोक के तीन भाग हैं- (१) नीचा लोक (२) मध्य लोक (३) ऊर्ध्व लोक । ऊर्ध्व लोक के चोटी के स्थान पर ईषत्प्रागभारा पृथ्वी है । २४ योजन ऊपर वे अलोक से स्पर्श कर रहे हैं ।
प्रतिपाद्य - संसार का आकार मनुष्य के दोनों हाथ फैलाये हुए शरीर के आकार के समान है । इसलिए लोक (संसार) का एक अर्थ शरीर भी है । लोक १४ रज्जू का है उसके तीन भाग हैं - अधोलोक, मध्यलोक और ऊर्ध्वलोक । अधोलोक ७ रज्जू से कुछ अधिक है, मध्यलोक १८०० योजन का है । ऊर्ध्वलोक ७ रज्जू से कुछ कम है । ऊर्ध्वलोक के ऊपरी भाग में सर्वार्थसिद्ध देवों के विमान है । उन विमानों से १२ योजन ऊपर ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी है, जिसे सिद्ध शिला कहते हैं, वह ४५ लाख योजन लंबी चौडी है, मध्य में आठ योजन ऊंची है। ऊंचाई पर अंतिम छोर मक्षिका की पांख से भी पतली है १३ अंगुल से अधिक है । सिद्धशिला के अंतिम ऊपरी भाग के रे४ योजन में सिद्ध रहते हैं । रहे हैं ।
वे सिद्ध अलोक से स्पर्श कर
न-ननोयो वींटलो
मगन हो रह्यो छे नीचगति
पामसी ॥६॥
हिन्दी-रे जीव ! तू संसार के कामभोग में मग्न हो रहा है इसलिए नीच (अधो) गति प्राप्त करेगा ।
प्रतिपाद्य - काम भोग सेवन से जीव अधोगति - नरकगति या तियंचगति में जाता है ।
ममो माउलो मामा हाथे वे लाडूडा
मः
मूल-रेजीव तू संसार ना कामभोग
मूल-संसार छे ते जीव नो अनादि घर छे तिहा मो नामा माउलो मोसालिय काम भोग रूपीया बे हाथ में लाडू देइ भोलाइ राखीयो । संसार मां थी नीकलवा दे नही ॥७॥
हिन्दी - संसार जीव का अनादि काल से घर है। वहां मामा और नानेरा काम और भोग रूपी दो लड्डू हाथ में देकर भुलाकर रखा है । संसार में से निकलने नहीं देता ।
प्रतिपाद्य- - काम का अर्थ कामना (पांच इन्द्रियों के विषय, भोग का अर्थ है उनका भोग करना । काम और भोग के वश फंसा हुआ है । वहां से निकलना बहुत दुष्कर है ।
सि - सिसी राणी चोकडी पाछी वाल कुंडावली
मूल - सिध रुप राणी ने मंदर चढ़ता कषाय नी चोकडी रुप चोक राखी छे ।
तुलसी प्रज्ञा
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धन, वासना आदि )
होकर जीव संसार में
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