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हिरदे ने विषे ग्यान रुप चांदणो थास्ये ॥३८॥!
हिंदी-ज्ञानबीज की वृद्धि करना । जैसे-जैसे ज्ञान का बीज बढ़ता जाएगा वैसेवैसे हृदय में ज्ञान का प्रकाश होगा ।
प्रतिपाद्य-ध्यान के द्वारा आत्मबोध जितना बढ़ेगा उतना ही आत्मज्ञान का प्रकाश बढ़ेगा। भ-भमो भारी भेसको
मूल - जिम भैस सुको नीलो चारो भक्षण करी पेट भारी थाय तिम तू पिण अभक्ष पामी ने खायस मा । देवादीक नो चलायो चालीस मा। अरण श्रावक नी परे दृढ़ राखजे। तथा वली प्रतादीक नीरमल पालता मन मा मोटो मान धरीस मा ।।३९॥
हिंदी -- जिस प्रकार भैस सूखो नीलो (हरो) चारो (घास) खाकर पेट भरती है वैसे तू अभक्ष्य मिलने पर खाना मत । देव आदि के द्वारा चलित करने पर चलित मत होना । अरण्य श्रावक की तरह दृढ़ रहना । व्रतों का निर्मलता से पालन करना । मन में अहंकार मत लाना।
प्रतिपाद्य - मांस, मदिरा आदि अभक्ष्य पदार्थ का सेवन मत करना ।
अर्हन्नक श्रावक धर्मनिष्ठ था। वह व्यापार के लिए जलपोत द्वारा समुद्र यात्रा कर रहा था। जब उसका पोत समुद्र के बीच में पहुंचा तब एक देव सामने उपस्थित हुआ। अर्हन्नक से कहा- तुम धर्म छोड़ दो अन्यथा मैं तुम्हारा पोत समुद्र में डूबा दूंगा। अहलक ने कहा- मैं धर्म नहीं छोड़ सकता । देव की क्रूर चेतावनी से दूसरे सारे यात्री घबरा गए और कहा- हम सब धर्म छोड़ते हैं। हमें बचाओ। फिर भी देव ने स्वीकार नहीं किया। सबने मिलकर अर्हन्नक पर दबाव डाला कि तुम छोड़ दो सबके प्राण बच जाएंगे । अर्हन्नक ने कहा- मैं एक क्षण भी धर्म नहीं छोड़ सकता। देव कुपित हो पोत को आकाश में उठा लिया और बोला-अर्हन्नक अब भी छोड़ दो अन्यथा सब मारे जाओगे। अन्नक विचलित नहीं हुआ। देव की परीक्षा में अर्हन्नक उत्तीर्ण हआ । पोत को समुद्र के तट पर लगा दिया। मुक्त भाव से अर्हन्नक की धर्म निष्ठा की प्रशंसा की । म-ममीया भाट चुले तरो
मूल -- जिम चूला नी भार धिगती रहे तिम तूं कोइ आक्रोस अणसहा मर्म वेधाला वचन सांभली अंतरंगम हियामां क्रोधाय मां भटीस मा ॥४०॥
हिंदी ----जिस प्रकार चूल्हे की अग्नि जलती रहती है वैसे तू आक्रोश, असह्य, मर्म भेदी वचन सनकर अन्तरहृदय में क्रोध से मत जलना।
प्रतिपाद्य-क्रोध नवमें गुणस्थान तक रहता है । इसलिए साधक को बहुत सावधानी रखनी चाहिए कि क्रोध जीव पर हावी न हो जाए और कर्मबंधन की शृंखला आगे न बढ़ती जाए। य-याया जाडो पेट को मूल-संसार यम क्रतातमुखो ना पेट मोटा छे। सव जगत्र नो ग्रा करे छ
तुलसी प्रज्ञा
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