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प्रभु चरणों में अखण्डात्मिका रति को भक्ति कहते हैं, जिसके द्वारा भक्त सद्यः संसार सागर से पार उतर जाता है। संसार में जीव मात्र का एकमात्र कल्याण साधक भक्ति ही है। योगियों के लिए भी भक्ति के अतिरिक्त और कोई मङ्गलमय मार्ग नहीं है।
श्रीमद्भागवत में नवधा भक्ति का विस्तृत विवेचन प्राप्त होता है। श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वन्दन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन आदि नवधा भक्ति है। अन्यत्र शुकदेवप्रोक्त श्रवण, कीर्तन स्मरण रूप त्रिधा भक्ति, सूतोपदिष्टा चतुर्धा भक्ति, श्रुतोदिता पंचधा भक्ति', नलकुबर मणिग्रीव निगदिता षोढा भक्ति, कपिलोपदिष्टा सप्तधा भक्ति" शौनकप्रोक्ता दशधा भक्ति,२ अम्बरीषोक्ता एकदशधा भक्ति" नारदोपदिष्टा द्वादशधा भक्ति," श्रीकृष्ण द्वारा कथित त्रयोदश प्रकार और पञ्चदश प्रकार की भक्ति," कपिल द्वारा उपदिष्टा अठारह प्रकार की भक्ति," सनकादि कुमारों द्वारा प्रवाचिता उन्नीस प्रकार की भक्ति, कपिलोक्ता २० प्रकार और २५ प्रकार की भक्ति," भगवान् कृष्ण द्वारा कथिता १२४ प्रकार की भक्ति, तथा ऋषभ के द्वारा प्रोक्ता २६ प्रकार की भक्ति का विवेचन उपलब्ध होता है। (ख) अनुग्रह -श्रीमद्भागवतीय आख्यानों में अनुग्रह तत्त्व का विस्तृत विवेचन
प्राप्त होता है। भक्त बार-बार भगवदनुग्रह की ही याचना करता है। भगवान् अनुग्रह के खनि हैं, वे भक्तों पर हमेशा कृपा दृष्टि बनाये रखते हैं।" जब जीव काल कर्मादि के द्वारा ग्रस्त हो जाता है वहां अनुग्रह करने के लिए स्वयं परमप्रभु प्रगट हो जाते हैं ।२ जब जीव का बल-पौरुष क्षीण हो जाता है और वह संकट में फंस जाता है तब भगवान् स्वयं उसको बलवीर्य प्रदान कर उसका उद्धार करते हैं। इस प्रकार आख्यानों में अनेक
स्थलों पर कृपा, अनुग्रह, दया, करुणा आदि का वर्णन पाया जाता है। (ग) शरणागति --यह श्रीमद्भागवत के मुख्य प्रतिपाद्यों में से एक है। भक्ति का
ही अंग है। भक्त जन अपने सभी पुण्य पापों को प्रभु के चरणों में समर्पित कर उसी के हो जाते हैं---
शणेन मयेन कृतं मनस्विनः
सन्यस्य संयान्त्यभयं पदे हरेः।" आपदकाल में भक्त जन अपने सारे लोकिक सम्बन्धियों को छोड़कर प्रभु चरण शरण ही ग्रहण करते हैं, क्योंकि प्रत्यक्ष मृत्यु मुख से तो वे ही बचा सकते हैं ।२४ इसलिए भक्त केवल विपत्तियों की ही कामना करते हैं, जिससे प्रभु चरणों का बारबार दर्शन होता रहे ।" भगवच्छरणागति को छोड़कर भक्त स्वर्ग, ब्रह्मलोक, भूमण्डल का साम्राज्य, रसातल का एकक्षत्र राज्य, योग की सिद्धियां, यहां तक कि मोक्ष की भी कामना नहीं करता। वह वैसा कुछ भी नहीं चाहता जहां पर प्रभु चरण कमलमकरन्द नहीं हैं।
संकट काल उपस्थित होने पर देवता लोग उस सव्यात्मक प्रभु की शरणागति ग्रहण करते हैं :
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तुलसो प्रज्ञा
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