Book Title: Tulsi Prajna 1995 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 102
________________ से विभूषित करते हुए भी इनके लोकोत्तर सौन्दर्य की चर्चा बार-बार करते हैं। इसका प्रमुख कारण यही प्रतीत होता है कि इनकी रूप माधुरी को लेकर लीला विग्रह स्वरूप को प्रमुख प्रतिपाद्य बनाकर इससे परवर्ती रासलीला इत्यादि मनोहारिणी चेष्टाओं को यथावत् पुष्ट करना इनका प्रमुख अभिप्रेत है। श्रीकृष्ण का वेणुवादन शिव के ताण्डव नृत्य की भांति सम्पूर्ण संस्कृत-साहित्य में सुप्रसिद्ध माना जाता है। इसी वेणु को लेकर अनेक उपालम्भों से युक्त राधा और गोपियों की रमणीय कल्पनाओं का भावबन्ध एकत्रित करके अनन्त कल्पनाओं के प्रसून विकसित किये हैं। संस्कृत वाङ्मय कृष्ण के वेणुवादन से ओत-प्रोत हैं । विष्णु के समस्त अवतारों की अपेक्षा कृष्ण में सौन्दर्य का निधान अतिशय रूप में किया गया है। इनके रूप में क्रूरता का सन्निवेश दृष्टिगत नहीं होता । जब हम नृसिंहावतार जैसे विष्णु के परम पराक्रमपूर्ण अवतारों की रूपरेखा अपने हृदय में स्थापित करते हैं तो उस काल में विष्णु का रौद्र रूप समक्ष उपस्थित हो जाता है । वह ऐसा रूप है जिसमें प्रज्ज्वलित क्रोधाग्नि का शमन देवगण भी नहीं कर पाते । इसी प्रकार अन्य अवतारों में पराक्रम मे ईश्वरत्व की सिद्धि की गई है। उसी को अवतार माना गया है। जिसमें लोकोत्तर पराक्रम की स्थिति उत्पन्न होती है जो अपने अपरिमित एवं अपराजेय शक्ति से दैत्य समूह का दमन कर सकें, उसी को ईश्वर के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। बलि दैत्यराज की कथा को भी भागवतकार ने सुन्दर ढंग से निरूपित किया है । बलि दैत्य था। किन्तु भगवान का परम भक्त भी था। यही कारण है कि उसने जानते हुए भी अपनी राज्यलक्ष्मी वामनावतार भत विष्ण को अर्पित कर दी। उसे केवल भगवान की भक्ति की अभिलाषा थी। भगवान के परम भक्त किसी भी वस्तु की मनागपि अभिलाषा नहीं रखते । उन्हें तो मात्र भगवद्भक्ति की ही कामना रहती है। भागवत भक्तों के चरित का एक भण्डार स्वरूप है। ब्राह्मण शाप से ग्रस्त परीक्षित को भक्ति दिलाने हेतु ही इस अमृत स्वरूप ग्रथ का प्रवचन शुकदेव के मुखारविन्द से सम्पन्न हुआ था। रामावतार में राम की बाल लीलाओं का संक्षिप्त वर्णन उपलब्ध होता है जो कृष्ण की अपेक्षा अत्यधिक न्यून है। चिरन्तन परम्परा से आती हुई गोपवृत्ति का भी अद्भुत वर्णन बाललीला से ही सम्भव है। माखन चोरी का वर्णन बाल्यकालीन लीलाओं में ही समाहित किया जा सकता है। कृष्ण की माखन चोरी, सामान्य चोरी का प्रसंग नहीं है । कृष्ण को इस विषय का दुःख था कि गोप माखन एवं दूध का स्वयं सेवन न करके उसका विक्रय करते थे। उन्हें इस परम्परा को हटाना था। कृष्ण की बाललीलाओं में सर्वाधिक महत्त्व गोचारण प्रसंग का है। गोचारण प्रसंग से कृष्ण को सिद्ध करना था कि भारतीय जीवन के लिए गायों का अतिशय महत्त्व है। ऐहिक एवं पारलौकिक दोनों प्रकार के अभ्युदय की कामना करने वाले व्यक्ति के लिए गौ सेवा अतीव उपयोगी है। बाल लीलाओं के वर्णन में अनेक प्रकार के कंस प्रेषित असुरों के वध का प्रसंग भी उपलल्ध होता है। यह प्रसंग मात्र कृष्ण के ईश्वरत्व रूप को प्रकट करने के उद्देश्य से वर्णित हुए हैं। अकासुर, वकासुर इत्यादि दैत्यों का वध कृष्ण के ईश्वरत्व रूप के स्थापना के साथ इन असुरों के उद्धार को भी सूचना प्रदान करता है। खण्ड २१, अंक ३ ३२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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