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तपस्वी एवं ज्ञानी ऋषि भी भक्तों का अपमान करने का साहस नहीं कर सकते। पुराणों में क्रोध की मूर्ति के रूप में वर्णित दुर्वासा महाभक्त अम्बरीष के समक्ष निष्प्रभ हो जाते हैं । इस प्रकार भक्ति को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने के साथ विष्णु के विविध अवतार एवं कृष्ण चरित की महत्ता पर भी प्रकाश डाला गया है।
श्रीमद्भगवद्गीता एवं पुराणों के अनुसार धर्म की स्थापना एवं अधर्म के नाश के लिए परमात्मा इस संसार में अवतरित होते हैं। ईश्वर के अवतार का सर्वाधिक प्रयोजन अपने लीला विग्रह द्वारा भक्तों के हृदय का प्रसादन है। यह सभी अवतार विष्णु के ही होते हैं । विष्णु रूप शक्ति को ही जगत् की पालिका शक्ति के रूप में स्वीकृति प्रदान की गई है। विष्णु के समस्त अवतारों की महत्ता संदेह से परे है । भागवतकार ने भी विष्णु के प्रमुख अवतारों का अपनी कृति में समुचित सन्निवेश किया है । पौराणिक साहित्य में कृष्ण को विष्णु का अवतार माना गया है। इनका यह स्वरूप वैदिक काल से लेकर पौराणिक काल तक विभिन्न रूपों में विकसित हुआ है। उपनिषदों में भी कृष्ण के नाम का उल्लेख उपलब्ध होता है।
यद्यपि कृष्ण का व्यक्तित्व ऐतिहासिक है तथापि इस सम्बन्ध में अनेक विचार उपलब्ध होते हैं । कृष्ण का सर्वप्रथम उल्लेख मैत्रायणि उपनिषद में उपलब्ध होता है । इस उपनिषद में ब्रह्म के स्वरूप का विश्लेषण करते हुए इसे समस्त शक्तियों के मूलभूत तत्त्व के रूप में प्रतिष्ठापित किया गया है। विष्णु को परवर्ती काल में वैष्णव धर्म के प्रधान देवता के रूप में मान्यता प्रदान की गई है।
वसुदेव कृष्ण का उल्लेख छान्दोग्य उपनिषद में भी उपलब्ध होता है। इस उपनिषद में कृष्ण देवकी के पुत्र हैं और इन्हें आंगिरस ऋषि के रूप में स्वीकार किया गया है । इस उपनिषद में कृष्ण का जो उल्लेख है, वह ऐतिहासिक व्यक्ति के रूप में नहीं दिखता । कृष्ण की ईश्वर रूप में सर्वप्रथम चर्चा 'हरिवंश पुराण' में आई है। इस पुराण में कृष्ण के सम्पूर्ण अवतार पराक्रम इनसे सम्बन्धित स्तुतियों में इन्हें ईश्वर, ब्रह्म एवं परमात्मा के अभिधान से विभूषित किया गया है। श्रीमद्भागत में वासुदेव और गोपाल कृष्ण इन दोनों में एकत्व की स्थापना कर दी है।
भारतीय साहित्य में भी महाभारत एवं अन्य पुराणों में वर्णित कृष्ण चरित में विविधता के दर्शन होते हैं। भारतीय साहित्य के आकर ग्रन्थ महाभारत में जिस कृष्ण का वर्णन उपलब्ध होता है। उसमें राजनीतिक पटुता का ही समावेश अत्यधिक मात्रा में वर्णित है । कृष्ण अपनी कूटनीति से ओत-प्रोत राजनीतिक बल पर पाण्डवों को विनयी बनाने में सक्षम हो जाते हैं। श्रीमद्भागवत में कृष्ण का ईश्वरीय रूप उपलब्ध होता है । इसमें जिस कृष्ण का उल्लेख हुआ है, वे पूर्णावतार से युक्त हैं। ये लीला अवतार व लीला पुरुष हैं। इसमें श्रीकृष्ण के व्यापक स्वरूप का उल्लेख हुआ है। वे पूर्णावतार से युक्त हैं । यही एक ऐसा ग्रन्थ है, जिसमें कृष्ण के सम्पूर्ण रूपों का एकत्र समाहार हुआ है । ये परब्रह्म हैं। ईश्वर हैं, तथा अपनी लोकोत्तर लीलाओं से भक्तों के मन का हरण भी करने वाले हैं। यह कहना उचित ही है कि श्रीमद्भागवत विविधता से पूर्ण महापुराण है। इसके एक-एक अंश अगाध समुद्र की भांति है। यही कारण है कि भक्ति रस की स्रोतस्विनी इसी महापुराण से प्रवाहित हुई। इसमें बाल्य
खंड २१, अंक ३
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