________________
परम विदुषी मदालसा डॉ० मुन्नी जोशी
भारतीय संस्कृति एवं दार्शनिक चिन्तन के अस्तित्व संरक्षण में जितना सहय पुरुष वर्ग का रहा है, उतना ही महिलाओं का भी योगदान है । वैदिक काल में अपाला, गार्गी एवं मैत्रेयी आदि महिलायें मन्त्र दृष्टा ऋषियों के समकक्ष आदर का भाजन बनीं हैं ।
वस्तुतः प्राचीन काल से ही महिलायें पुरुषों की भांति अपना भी स्थान अपनी सतत साधना से बनाये हुए थीं । इनका क्षेत्र गृहिणी पद पर ही अधिष्ठित होना नहीं था, वरन् लोगों में अपने त्याग, तपस्या एवं लोकोत्तर आचरणों से समाज की सुसंस्कृत रचना में इन्होंने अपना महत्वपूर्ण योगदान भी किया था। इस श्रृंखला में पौराणिक वाङ्मय में, मदालसा का चरित्र ऐहिक एवं पारलौकिक उभयविध मार्गों को प्रशस्त करने वाली चरित्र नायिका के रूप में पूर्ण रूप से प्रतिष्ठित हुआ है ।
माता के उत्सर्ग में पोषित बालक माता के मुख से सुनकर, भोग एवं वैराग्य के मार्गों का चयन कर सकता है । इसका अतीव सुरुचिपूर्ण निदर्शन मदालसा के चरित्र में दृष्टिगत होता है । इस विदुषी महिला ने धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष चतुर्विध पुरुषार्थों के भाजन भूत अपने बालकों को लौकिक एवं पारलौकिक लक्ष्यों को पूर्ण करने वाली विधाओं की शिक्षा-दीक्षा लोरी में ही दे दी है। इस प्रकार का उज्ज्वल एवं व्यावहारिक स्वरूप समूचे वाङ्मय में अत्यल्प मात्रा में उपलब्ध होता है । प्रस्तुत शोधपत्र में मदालसा के वैदुष्य का दार्शनिक एवं लौकिक समस्त विद्याओं की जननी के रूप में अंकन करना युक्तिसंगत प्रतीत होता है ।
मदालसा का इतिहास
मार्कण्डेय पुराण में मदालसा एक विदुषी महिला रूप में परिलक्षित होती है । मदालसा गंधर्वराज विश्वावसु की कन्या है,' एक दिन उद्यान में अठखेलियां करती मदालसा को देख, दुष्टबुद्धि, उग्रमूर्ति, पातालकेतु नामक विख्यात दुरात्मा अपनी तमोमयी माया का जाल फैलाकर मदालसा का हरण कर लेता है । पातालकेतु द्वारा हरण की गयी मदालसा आत्मघात करने के लिए उद्यत हुई, तभी एक कन्या ने आकर कहा –‘“यह उद्यत दानव तुमको प्राप्त नहीं कर सकेगा " । कुण्डला के कथनानुसार ऋतुध्वज आकर इस दुरात्मा की इहलीला समाप्त कर देता है ।
ऋतुध्वज द्वारा अनुरक्त मदालसा का विवाह सखी कुण्डला के सहयोग से सम्प
खण्ड २१, अंक ३
३१७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org