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ते चोकी ने ढेली ने कदापी कोइ जीव उचो चढे तो पिण तेहने ११ मा पावडिया थी पाछो संसार रुप कुंप मा नाखे छे ।।८।।
हिन्दी --सिद्ध रूप रानी को मंदर पर्वत पर चढते समय कषाय चतुष्क रोक रखा है। यदि कोई जीव चोकडी (कषाय चतुष्क) को ढकेल कर आगे चढ़ता है तो मोह ११वीं सीढी से वापस संसार कूप में गिरा देता है।
प्रतिपाद्य ---क्रोध, मान, माया और लोभ ये चार कषाय हैं । कषाय १०वें गुणस्थान तक रहता है । आठवें गुणस्थान से जीव दो श्रेणियों में से एक श्रेणी लेता हआ आगे बढ़ता है । क्षपकश्रेणी लेने वाला जीव १०वें गुणस्थान को पार कर ११वें को उल्लंघन कर १२वें गुणस्थान में चला जाता है। उपशमश्रेणी लेने वाला जीव १०३ गुणस्थान को पार कर ११वें गुणस्थान में जाता है । वहां से वह गिरता है। ११वें गुणस्थान से १०वें, ९वें, वें, ७वें गुणस्थान तक आने में उसे अन्तर्मुहूर्त लगता है। वहां से वह छठे गुणस्थान में आता है। कोई जीव छठे में, पांचवें में, चौथे में और कोई जीव पहले गुणस्थान में भी आ जाता है। मिथ्यात्व से आगे विकास करता हुआ ११वें गुणस्थान तक पहुंचकर वापस पहले गुणस्थान में आ जाता है। वापस संसार रूपी कुंए में गिर जाता है। धं---धाउ२ क्षोकलो माथे चढियो छोकरो, हाथ मे डांगडी
मूल-रे जीव तू संसार मां ध्याइ ध्याइ ने गर्भावास मां पडीस तिहां तुं ढोकली नी परे सीजसी । ते वली छोकरा छोकरी वीटव नामा पडिस तो हिवे जो तूं धर्मनामा चक्रवती ना सिद्ध नगर मां जावो बांचे छ तो प्रथम तो समत्क नामे महामंत्री प्रधान छ तेह थी पहेली मीलजे तो तुज ने धर्म म्हाराज मीलस्ये। तो समकत ने घर जाता विच मे गाटी विषम छे ते माहे चोर लुटा लुट करहया छे तो हाथ में डांगडी रुप कथा वारता प्रवरतीकरण, अपुर्वकरण सुभ परीणाम रुप महामुदगर हाथ में लेइ जे ।।९।।
हिन्दी - रे जीव तू संसार में दौड़-दौड़ कर गर्भावास में जाएगा। वहां त ढोकली की तरह संतप्त होगा। बच्चे बच्चियों के वींटव (लपेट) में पड़ जाएगा। यदि तू धर्म चक्रवर्ती के सिद्धनगर में जाने की कामना करता है तो पहले सम्यक्त्व महामंत्री से मिलना । वह वहां प्रमुख प्रधान है। उनसे संपर्क करने से वह तुमको धर्म महाराज से मिला देगा । सम्यक्त्व के घर की ओर जाते समय बीच में विषम घाटी है। उसमें चोर और लुटेरे रहते हैं। इसलिए हाथ में लाठी और मुदगर रखना। लाठी है-कथा वार्ता रूप प्रवृत्तिकरण, और मुद्गर है - शुभ परिणाम रूप अपूर्वकरण ।
प्रतिपाद्य-संसार में जीव बार-बार जन्ममरण करता रहता है। वहां वह परिवार के मोह में फंसकर दुखी हो जाता है। यदि कोई जीव दुख से मुक्ति चाहता है तो पहले वह मिथ्यादृष्टि से सम्यक्दृष्टि बनता है। अनादि अनंत संसार में परिभ्रमण करने वाले प्राणी के 'गिरिसरित् ग्राव घोलणा' न्याय के अनुसार आयुष्य वजित खण् २१, अंक ३
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