________________
(२) ऋजु-वक्र -कुछ पुरुष शरीर की चेष्टा से ऋजु होते हैं किन्तु प्रकृति से वक्र
होते हैं। (३) वक्र-ऋजु कुछ पुरुष शरीर की चेष्टा से वक्र होते हैं किन्तु प्रकृति से
ऋजु होते हैं। (४) वक्र चक्र-कुछ पुरुष शरीर की चेष्टा से भी वक्र होते हैं और प्रकृति से
भी वक्र होते हैं। यहां प्रथम प्रकार के पुरुष होना कहा गया है । ण-राणा ताण सेलए
मूल-जो तूं मोह रूप राणा थी झूझ करता दर्शन ने चारीत्र तथा त्रिण गुप्ति रुप सेल हाथ मे राखजे ॥३०॥
हिंदी-यदि तू मोह रूप राजा से युद्ध करे तो दर्शन और चारित्र तथा तीन गुप्ति रूप भाला हाथ में रखना।
प्रतिपाद्य- सम्यक्त्व, चारित्र और तीन गुप्ति की सम्यक् आराधना करना । जो जीव मोह पर विजय प्राप्त करना चाहता है उसे सम्यक् दर्शन, सम्यक् चारित्र और तीन गुप्ति की आराधना करनी होती है। इनकी आराधना से ही मोह को नष्ट किया जाता है। त-ततो तावे तेलए
मूल-तूं तप जप करतो कोइ ना आक्रोस वचन साभली तपत तेल नी परे तातो थाइस मा ॥३१॥
हिंदी-तू तप और जाप करता हुआ आक्रोश वचन सुनकर तपे हुए तेल की तरह गरम (उत्तेजित) मत होना ॥३१॥
प्रतिपाद्य-तप और जाप से ऊर्जा शक्ति का विकास होता है। यदि उसका ऊर्वीकरण न हो तो स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है और आवेश के प्रसंग आते रहते
थ-थया बेरख बहली
मूल - कदापी ताहरो मन वसी न थाय तो पिण वचन काया दोय तो थिर थाप करने राखजे ॥३२॥
हिंदी-कभी तुम्हारा मन वश में न रहे तो वचन और काया ये दो योग तो स्थिर रखना। . प्रतिपाय-तीन करण-मनः करण, वचन करण, काय करण
तीन योग-मनो योग, वचन योग, काय योग सामायिक में मनःकरण को छोड़कर वचन करण, काय करण और तीन योग का त्याग होता है। म २१, अंक ३
३०७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only.
www.jainelibrary.org