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रहा है । गुरु तुमको आरंभ और समारंभ के भार से मुक्त कराएंगे ।
प्रतिपाद्य - आरंभ - वध |
- डडीया आमण दुमणो
मूल - हिवे गुरु घर नो भार छोडावी ने पंच अणुव्रत पंच महाव्रत रुप अभिग्रहादिक कराव्या ते पालता आमण दुमण भ्रंगचित थाइ पश्चाताप करीस मा ॥२१॥
संरभ -- वध का संकल्प । समारंभ - परिताप ।
हिंदी - गुरु घर के भार को उतराते हैं। पांच अणुव्रत पांच महाव्रत और अभिग्रह आदि कराते हैं । उनका पालन अच्छी तरह से करना ।
प्रतिपाद्य - पांच महाव्रत- प्राणातिपात से विरमण, मृषावाद से विरमण, अदत्तादान से विरमण, मैथुन से विरमण, परिग्रह से विरमण ।
पांच अणुव्रत - स्थूल प्राणातिपात से विरमण, स्थूल मृषावाद से विरमण, स्थूल अदत्तादान से विरमण, स्वदारसंतोष इच्छापरिमाण ।
अभिग्रह - वृत्ति संख्यान और भिक्षाचर्या इसके पर्यायवाची नाम हैं । भिक्षाचर्या साधु के जीवन का व्रत है परन्तु वह तप वहीं होता है जहां अभिग्रह के द्वारा साधक अपना और अधिक खाद्य संयम करता है ।
च-चचा चीनी चूंप ए
मूल - गुरुदत्त श्रीधर्म पालवानी चित में चूंप राखजे ॥२२॥
हिंदी - गुरु द्वारा प्रदत्त श्री जिनधर्म को पालन करने के लिए चित्त में सजगता, उत्साह रखना ।
प्रतिपाद्य -जाए सद्धाए निक्खतो, परियाय द्वाण मुत्तमं ।
तमेव अणुपालेज्जा |
-दसर्वकालिक ८।६०
जिस श्रद्धा से उत्तम प्रव्रज्या स्थान के लिए घर से निकला है उस श्रद्धा को बनाए रखना ।
छ - छ छाव दोया पोटलो
मूल - छद्मस्त पणे गुरु समीपे श्रुतज्ञान पूर्व विद्या नो पोटलो बांधजे ||२३|| हिंदी - छद्मस्थ अवस्था में गुरु के पास से श्रुत ज्ञान की गांठडी बांधना । प्रतिपाद्य - श्रुतज्ञान के १४ प्रकार ये हैं
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(१) अक्षरश्रुत
(२) अनक्षरश्रुत
(३) संज्ञिश्रुत (४) असंज्ञिश्रुत
(५) सम्यक्श्रुत
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(८) अनादिश्रुत
( ९ ) सपर्यवसितश्रुत
(१०) अपर्यवसितश्रुत (११) गमिकश्रुत (१२) अगमिकश्रुत
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तुलसी प्रज्ञा
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