________________
खण्ड २१, अंक ३
||ॐ नमः सिद्धं । श्रईईनमा एऐनअ अं अः क खगघङाच्न जफत्राटम्मदशतिथ दा धनापफबसमा यलवाना सहालका क का कि। की कु कू के कै को कौ कं कां कः ||२३४५६ ए। श्रीप्रश्न माम्नाय ज्ञ
बुलसी प्रज्ञा
तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य श्रीकालूगणी की हस्तलिपि ( तेरापंथ धर्मसंघ के साहित्य भंडार के सौजन्य से मुनिश्री मधुकरजी द्वारा प्राप्त )
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org