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और द्विभावात्मक होने से स्वप्न अवस्था एवं तृतीय मात्रा 'मकार' मापक और विलीन करने वाली होने से सुषुप्ति अवस्था की द्योतक है । ये ही तीन मात्रायें क्रमश: विश्व, तेजस एवं प्राश नामक तीन चरणों की द्योतक हैं। मात्रा रहित ॐकार अव्यवहार्य, प्रपंचातीत एवं कल्पनारूप है। यही ब्रह्म का चतुर्थ चरण है। तांत्रिक परिभाषा में बिन्दु नवक अर्द्ध मात्रा रूप है । यह ॐकार त्रिमात्र रूप है। इस त्रिमात्र से अमात्र रूप में जाने हेतु बिन्दु नवक रूप नवपद सेतु रूप है। इसलिये जैनागमों में ॐ के प्रणिधान पूर्वक नवपद की आराधना अनिवार्य बताई गई है। नवपद सिद्ध चक्र का रूढि प्रयुक्त नाम है । 'प्रयोगक्रमदीपिका' में कहा गया है
अकारो भूरुकारस्तु भुवो मार्ग स्वरीरितः --- का ॥११॥ अर्थात् अउम में भू भुवः स्वः तीनों का समावेश हो जाता है। श्री पंचपरमेष्ठि वाचक यह ॐकार अ+अ+आ+उ+म् आदि ५ वर्णों के योग से बना है जिन्हें क्रमशः अरिहत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं साधु का प्रतीक कह सकते हैं। यह परमेष्ठि भगवंतों का एकाक्षरी मंत्र है। पंचनमस्कृतिदीपक नामक ग्रन्थ में पूज्यपाद् समन्तभद्रसूरि ने इसकी महिम इस प्रकार गाई है कि श्वेत वर्ण से ध्यान करने से यह ॐ शान्ति, तुष्टि, पुष्टि आदि प्रदान करता है। लाल वर्ण से ध्यान करने से वशीकरण करता है । कृष्ण वर्ण का ध्यान करने से शत्रु का नाश एवं धूम्रवर्ण से ध्यान करने से यह स्तम्भन करता है।
ॐकार को प्रणव भी कहते हैं। शिव पुराण में कहा गया है-"नूतनं वे करोतीति प्रणवं तं विदुबुधाः" नित्य नवीनता कर देने वाला होने से पंडितजन इसे प्रणव कहते हैं। प्रणव का अर्थ है प्रकृति से उत्पन्न हुए संसार के लिये नोकारूप अथवा (प्र) प्रपंच (न) नहीं है (व) तुममें अर्थात् आत्माओं में कोई प्रपंच नहीं है। _नमः में चार वर्ण एवं एक विसर्ग है। न+अ+म् +अ+विसर्ग जिसका अर्थ है न्-नहीं, अ का अर्थ अभाव, म्-नापना (अपूर्णता) एवं विसर्ग का अर्थ सृष्टि अर्थात् सचराचर सृष्टि की पूर्णता के मापने में, मूल्यांकन में अपूर्णता नहीं होनी चाहिये । सपरापर सृष्टि का भौतिक प्रतीक वर्ण मातृका है एवं परारूप अहं है जो मातृका का सार बीज है । सभी को यथायोग्य सम्मान देना ही नमः का तात्पयार्थ है। कहा गया है "तन्नम इत्युपासीत" अर्थात् उसी एक नमः की उपासना की जानी चाहिए। नमः की तीन मात्रायें प्रणव की त्रिमात्रता की सूचक है। त्रिमात्र का अर्थ है संसार अर्थात् नमः नमने वाले को संसार की सभी वस्तुएं आसानी से प्राप्त हो जाती हैं। ये न और म दोनों अनुनासिक हैं एवं विसर्ग प्राणध्वनि है । समस्त अनुनासिकों में ये दोनों ही प्रधान हैं एवं स्थान भेद से ये ही न-नारि शक्ति एवं म-महेश्वर पुरुष रूप बन • आ ण आदि पंच रूपों में प्रकट होते हैं जो पंचभूतात्मक संसार का प्रतीक है । ये न म अनुनासिक है जिनका स्थान नासिका है । नासिका में वायु नाभि कमल की ओर प्रयाण करती है। यही नाभि विसर्ग का उच्चारण स्थान है अर्थात् नमः से नाभि कमन से प्राण का उर्ध्वगमन हो नासिका से श्वासोच्छ्वास रूप में
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तुलसी प्रहा
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