Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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14] चंवर डुलाने लगीं। फिर महाराज ने स्व-हाथों से उनके ललाट पर उदयाचल के शिखर पर स्थित चन्द्र-सा चन्दन-तिलक किया। इस प्रकार राजा ने कुमार को महान् प्रानन्द से राज्य सिंहासन पर बैठाकर लक्ष्मी की रक्षा करने का मानो मन्त्र हो ऐसा उपदेश दिया
(श्लोक १९६-२०९) 'हे वत्स, आज से तुम राज्य के आधार हो, तुम्हारा प्राधार कोई नहीं है। अतः प्रमाद परित्याग कर अपनी प्रात्मा से पृथ्वी को धारण करो। आधार शिथिल होने पर प्राधेय भ्रष्ट हो जाता है। एतदर्थ विषयों के प्रति सेवन से उत्पन्न शिथिलता से तुम स्वयं को बचायो । कारण, यौवन, धन, रूप और स्वामित्व इनमें कोई एक भी प्रमाद का कारण है और बुद्धिमानों की कार्य सिद्धि को नष्ट करने वाला है-इसे स्मरण रखना। कुल-परम्परा से प्रागत होते हए भी दुराराध्य और छिद्रान्वेषणकारिणी यह लक्ष्मी राक्षसी की तरह प्रमादी व्यक्तियों की वंचना करती है। खूब पुराना स्नेह भी लक्ष्मी की स्थिरता का कारण नहीं होता। प्रतः उसे जब भी सुयोग मिलता है तभी सारिका की तरह उसी क्षण अन्यत्र चली जाती है। इसे कुलटा नारी की तरह बदनामी का भय भी नहीं होता । जागते रहने पर भी प्रमाद में पड़े पति को यह कुलटा नारी की तरह परित्याग कर चली जाती है। लक्ष्मी यह कभी नहीं सोचती कि मैंने इसके पास चिरकाल तक रक्षा प्राप्त की है। अवसर मिलते ही वह वानर की तरह कूदकर दूसरे स्थान पर चली जाती है। निर्लज्जता, चपलता और स्नेहहीनता के अतिरिक्त और भी उसमें कई अवगुण हैं। जल की तरह नीचे जाना भी उसके स्वभाव में है । ऐसी लक्ष्मी सर्वदुर्गुणयुक्त है फिर भी सभी उसे पाने का प्रयत्न करते हैं । इन्द्र भी जब लक्ष्मी पर मासक्त है तब अन्य का तो कहना ही क्या ? उसे स्थिर रखने के लिए तुम पहरेदार की तरह नीति और पराक्रम सम्पन्न बनकर सर्वदा सावधान रहना। लक्ष्मी की इच्छा रखते हुए भी अलुब्ध की तरह सदा उसका पालन करना । कारण, स्त्रियां जिस प्रकार सुन्दर पुरुष की अनुगामिनी होती हैं उसी प्रकार लक्ष्मी भी हमेशा निर्लोभी के पीछे चलती है। ग्रीष्म के प्रचण्ड सूर्य की तरह कभी भी पृथ्वी को पीड़ित मत करना। जिस प्रकार उत्तम वस्त्र सामान्य - सा दग्ध होने पर भी परित्यक्त होता है उसी प्रकार सामान्य अन्याय करने वाले व्यक्ति का