Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 159
________________ 150] से पूछा- यह कौन है ? किसने इसे सर्वशान्त किया है ? यह कहाँ से आया है ? सब कुछ ज्ञात कर मुझे बताओ और इसे यहीं ले पायो। द्वारपाल ने तुरन्त पाकर उससे पूछा, किन्तु वह तो जैसे सुन ही नहीं पा रहा हो इस प्रकार चिल्लाता रहा । तब द्वारपाल ने कहा, ब्राह्मण, तुम दु:ख से वधिर हो गए हो या वधिरे ही हो? ये भगवान अजितनाथं के भाई हैं और दीनदुखियों के रक्षक एवं शरणार्थियों के शरण्य हैं। तुम्हारा क्रन्दन सुनकर उन्होंने स्वयं सहोदर की तरह प्रादर सहित पुछवाया है कि किसने तुम्हें सर्वशान्त किया है ? तुम कौन हो ? कहाँ से आए हो? ये सब बातें मुझे बताग्री या स्वयं जाकर रोगी जिस प्रकार वैद्य को अपने रोग का कारण बताता है उसी प्रकार महाराज को अपने दुःख का कारण बतायो। (श्लोक ६४-७०) द्वारपाल की बात सुनकर ब्राह्मण धीरे-धीरे सभागह में प्राया। शिशिर पाते से जिस प्रकार कमल मुद्रित हो जाता है उसी प्रकार उसकी प्रांखें मुद्रित थीं। हेमन्त ऋतु की अर्द्धरात्रि की चन्द्र जैसे मलिन हो जाता है उसी प्रकार उसका मुख मलिन था। उसके सुन्दर केश भालू के केशों की तरह बिखरे हुए थे : वृद्ध बन्दर की तरह उसके गालों में खड्ड हो गए थे।(श्लोक ७१-७३) दयालु चक्रवर्ती ने ब्राह्मण से पछा-क्या किसी ने तुम्हारा सुवर्ण छीन लिया है ? या तुम्हारे वस्त्रालंकार चोरी कर लिए हैं ? या किसी विश्वासघातक ने तुम्हारा बन्धक रखा द्रव्य देने से इन्कार कर दिया है ? या किसी ग्रामरक्षक ने तुम्हें उत्पीडित किया है ? या किसी शुल्क अधिकारी ने तुम्हारा समस्त द्रव्य छीनकर तुम्हें संकट में डाल दिया है ? या तुम्हारे भागीदार ने तुम्हारा भाग देना अस्वीकृत कर दिया है ? या किसी ने तुम्हारी स्त्री का अपहरण कर लिया है ? या किसी बलवान शत्रु ने तुम पर अाक्रमण किया है ? या किसी भयंकर प्राधि-व्याधि ने तुम्हें पीड़ित कर रखा है ? या ब्राह्मण जाति सुलभ दारिद्रय ने जन्म से ही तुम्हें पीड़ित कर रखा है ? हे ब्राह्मण, तुम्हें जो भो दुःख है मुझे बताओ। (श्लोक ७४-७९) राजा की बात सुनकर ब्राह्मण नट की भाँति आँसू बहाते हुए करबद्ध होकर बोला-स्वर्ग में जैसे न्याय और पराक्रम से इन्द्र शोभा पाता है उसी प्रकार इस भरत क्षेत्र की यह छह खण्ड

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