Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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(181 से बोले-हे राजपुत्र, अनेक लक्ष्मी सम्पन्न मानो कुबेर की लक्ष्मी ने ही उसका आश्रय लिया हो ऐसा श्रावक पूर्ण संघ एक तीर्थयात्रा के लिए निकला। सन्ध्या समय उन्हें कुछ दूरी पर एक ग्राम मिला। वे उस ग्राम में गए और एक कुम्हार के घर के पास डेरा डाला। उस सम्पन्न संघ को देखकर ग्राम निवासी बड़े प्रसन्न हुए और तीर, धनुष व तलवार लेकर उसे लूटने को अग्रसर हुए; किन्तु पाप के भय से उस कुम्हार ने सबको अमृतमय हितप्रद वचनों से समझाबुझाकर उस कार्य से निवृत्त किया। उस कुम्हार के प्राग्रह से ग्राम निवासियों ने उस संघ को उसी प्रकार छोड़ दिया जिस प्रकार हस्तगत पात्र को कोई छोड़ देता है। उस गाँव के सभी लोग चोर थे अतः उस गाँव के राजा ने गांव को उसी प्रकार जला डाला जिस प्रकार किसी शत्र के गांव को जला दिया जाता है। सौभाग्यवश उस दिन कुम्हार किसी की बुलाहट पर अन्य गाँव गया हुआ था एतदर्थ वह अकेला ही बच पाया। कहा भी गया है कि सत्पुरुषों का हर स्थिति में कल्याण ही होता है। तदुपरान्त काल योग से मृत्यु पाकर उस कुम्हार ने विराट् देश में कुबेर के मानो द्वितीय भण्डारी ही हों ऐसे धनवान वणिक के घर जन्म ग्रहण किया। गांव के उन लोग ने भी, जो जलकर मरे थे विराट् देश में ही साधारण मनुष्यों के रूप में जन्म प्राप्त किया। कारण, एक सा कार्य करने वाले एक रूप स्थान ही प्राप्त करते हैं। उस कुम्हार के जीव ने तृतीय भव में उसी देश के राजा के घर जन्म लिया । वहाँ से मृत्यु प्राप्त कर महान् ऋद्धि सम्पन्न देव हुग्रा। वहाँ से च्यवकर अब तुम भगीरथ बने हो और वे ही ग्रामवासी भव भ्रमण करते हुए जह नु कुमार आदि सगर पुत्रों के रूप में जन्मे । उन्होंने एक साथ मन से संघ के अनिष्ट का जो चिन्तन किया था उसी के फलस्वरूप वे एक साथ ही जलकर राख हुए। इसमें ज्वलनप्रभ नागराज तो निमित्त मात्र हैं। हे महाभाग, तुमने उस समय ग्रामवासियों को निकृष्ट कार्य करने से रोका था इसलिए तुम उस समय भी जलकर नहीं मरे और इस समय भी नहीं मरे।
(श्लोक ५८०-६०१) इस भाँति केवली के मुंह से अपना पूर्व भव सुनकर विवेक के सागर भगीरथ संसार से विरक्त हो गए; किन्तु फिर भी यही सोचकर उस समय दीक्षित नहीं हुए हैं कि यदि वे भी दीक्षा लेंगे तो पितामह पर तो दुःखों के विस्फोट पर विस्फोट का कारण हो