Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 165
________________ 156] राजा ने सोचा- यह ब्राह्मण अपने पुत्र की मृत्यु के बहाने मेरे पुत्रों की मृत्यु के नाटक की प्रस्तावना सुना रहा था । यह स्पष्टतः मेरे पुत्रों की मृत्यु की बात ही कह रहा है । क्योंकि मेरे प्रधान पुरुष भी कुमारों के बिना यहाँ अकेले ही आए हैं; किन्तु वन में विचरण करने वाले केशरी सिंह की तरह पृथ्वी पर इच्छापूर्वक भ्रमण करने वाले मेरे कुमारों का विनाश कैसे सम्भव है ? जिनके साथ महारत्न थे, जो स्वयं पराक्रम में अजेय थे ऐसे अस्खलित शक्ति सम्पन्न कुमारों को कौन मार सकता है ? ( श्लोक १६६ - १६९) तब उन्होंने प्रमात्यों से कहा- सत्य क्या है बतायो ? प्रत्युत्तर में अमात्यों ने नागकुमारों के इन्द्र- ज्वलनप्रभ का सारा वृत्तान्त सुना दिया । यह सुनते ही वज्र - प्रताड़ित से पृथ्वी को कम्पित करते हुए वे मूच्छित होकर गिर पड़े। कुमारों की माताएँ भी मूच्छित हो गयीं। क्योंकि पुत्र-वियोग का दुःख माता-पिता दोनों को ही समान होता है । (श्लोक १७०-१७२) समुद्र के निकटस्थ गर्त में गिरे जल-जन्तुनों की भाँति अन्य लोगों की क्रन्दन ध्वनि से राज-महल भर उठा। मन्त्रीगण भी राजकुमारों की मृत्यु के साक्षी रूप बने प्रात्म-निन्दा करते हुए करुण-स्वर से क्रन्दन करने लगे । स्वामी के दुःख को देखने में असमर्थ हैं इस प्रकार छड़ीदार भी हाथों से मुख को ढँककर उच्च स्वर से रोने लगे । देह-रक्षकगरण अपने प्राण-प्रिय अस्त्रों का परित्याग कर - वायुभग्न वृक्ष की तरह जमीन पर गिरकर विलाप करते हुए लोट-पोट होने लगे । दावानल में गिरे तित्तर पक्षी की तरह कंचुकी स्व-कंचुकी को फाड़-फाड़कर रोने लगा और चिरकाल के पश्चात् प्रागत शत्रु की तरह वक्षों पर प्राघात करते 'हाय, हम मर गए' बोलते हुए दासी दास क्रोध करने लगे । (श्लोक १७३-१७८) पंखा वीजने एवं जल के छींटे देने से राजा और रानियों के दुःख शल्य को अपहरण करने वाली संज्ञा लौटने लगी। जिनके वस्त्र प्रसुत्रों के साथ प्रवाहित काजल से मलिन हो गए थे, जिनके गाल और आँखें केशों के बिखर जाने से प्राच्छादित हो रहे थे, जिनके गले में पड़ी मुक्ता-मालाएँ वक्ष पर कराघात करने के कारण बिखर-बिखर जा रही थीं, जमीन पर लोटने के कारण जिनके कङ्कणों के मुक्ता टूटे जा रहे थे, वे इतना दीर्घ निःश्वास फेंक रही थी मानो शोकाग्नि का धुप्राँ बाहर हो रहा था - - उनके कण्ठ और

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